ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
|
7 पाठकों को प्रिय 38 पाठक हैं |
एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''पहले-पहल इन्होंने ही मुझे मामू के साथ होस्टल में देखा था। डर रही थी कि कहीं पहचान न जाएं।''
''वे तो पहली ही नजर में पहचान गए थे कि तुम वही लड़की हो।''
उनकी यह बात सुनते ही वह धक् से रह गई। उसके हाथ-पांव कांपने लगे। बड़ी मुश्किल से वह बिस्तर की चादर ठीक कर सकी।
लाला जगन्नाथ ने उसकी मानसिक दशा समझते हुए कहा-''घबराने की कोई बात नहीं, मैंने बात बना दी थी।''
''वह कैसे?''
''जैसे भी हुआ उन्हें विश्वास दिला दिया कि उन्हें भ्रम हुआ।''
यह सुनकर वह चुप हो गई। एक गहरा सांस लेते हुए उसने बिस्तर पर तकिया जमाया और बोली-''आप बिस्तर पर आएंगे अभी?''
''नहीं, कुछ देर और बैठूंगा।''
अंजना बिस्तर संवारकर जाने लगी तो बाबूजी ने उसे रोक लिया और बोले-''तुम्हारी गैरहाजिरी में हमने एक फैसला कर लिया है-एक अनोखा फैसला।''
''क्या?'' वह चौंक उठी।
''कमल और तुम्हारे ब्याह का फैसला।''
वह यह सुनते ही सिर से पांव तक सिहर उठी और लाज से मुंह फेरकर खड़ी हो गई। उसे लगा जैसे उसके पांव वहीं फर्श में गढ़ गए हों।
|