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कटी पतंग
कटी पतंग
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9582
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आईएसबीएन :9781613015551 |
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38 पाठक हैं
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''बड़े कमरे में खेल रहा है।''
''जा, पहले उसे संभाल।''
वह उनके कुसमय क्रोध को भांप गई और जल्दी से कपड़े समेटती हुई अंदर चली गई। लाला जगन्नाथ ने देखा कि इतने में केदार बाबू ने मिठाई की पूरी प्लेट साफ कर दी थी।
दो घंटे बाद जब अंजना मंदिर से लौटी तो लालाजी के मित्र महोदय जा चुके थे और लालाजी अपने कमरे में बैठे कोई किताब पढ़ रहे थे। अंजना ने बढ़कर उन्हें देवी का प्रसाद दिया और खिड़कियों के पर्दे गिराने लगी, क्योंकि कमरे में हवा के तेज झोंके आ रहे थे।
''आपके मेहमान चले गए बाबूजी?'' उसने पूछा।
''हां बहू! अभी थोड़ी देर पहले ही गए हैं।''
वह चुप हो गई और खिड़की से हटकर उनका बिस्तर ठीक करने लगी।
सहसा लाला जगन्नाथ ने पुकारा-''बहू!''
''जी, बाबूजी!''
''आज तुम यों उजड़ी सूरत बनाए उनके सामने आओगी, इसकी मुझे आशा नहीं थी।''
''वैसा मैंने जान-बूझकर किया था बाबूजी!''
''वह क्यों?''
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