ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
एक रोगी की शय्या के पास पहुंचकर वह सहसा ठिठक गई जैसे स्याह बदलियों में पूनम का चांद नजर आ गया हो। वह उस रोगी को देखने लगी जिसकी चारपाई के बराबर वाले बिस्तर पर राजीव पड़ा हुआ था।
पूनम को देखकर उसके मुंह से चीख निकल ही जाती, लेकिन उसे अपनी आंखों पर जैसे यकीन नहीं आया। उसके होंठ फड़फड़ाकर रह गए।
वह पूनम की चारपाई के पास जाने के लिए डरते-डरते आगे बढ़ी जिसे डॉक्टरों ने घेर रखा था। पूनम दर्द से कराह रही थी। दो-तीन नर्सें उसे पकड़े हुए थीं। पूनम सिर से पांव तक कुचल गई थी। उसकी दोनों टांगें कट चुकी थीं। चेहरा भयानक लग रहा था। सारा बदन पट्टियों से बंधा हुआ था और वह अर्धमूर्छित अवस्था में चिल्ला-चिल्लाकर कह रही थी- ''मुझे मरने दो...मैं अब...जीना नहीं चाहती।''
डॉक्टरों ने जबरदस्ती उसे इंजेक्शन दे दिया और दूसरे ही क्षण वह अचेत हो गई। उसकी चारपाई के पास वे यंत्र रखे हुए थे जिनके द्वारा उसके शरीर में खून और ग्लूकोज पहुंचाया जा रहा था।
अंजना धीरे-धीरे आगे बढ़ती-बढ़ती उसके पास पहुंची और बड़े ध्यान से उस पूनम के चांद को देखने लगी जिसपर विधाता ने क्रूर कुचक्र चलाया था - ऐसा कुचक्र जिसने उसे काल के गाल में झोंक दिया था।
''आप?'' डॉक्टर ने रुख पलटते ही अंजना से पूछा जो अचरज और निराशा की प्रतिमा बनी पूनम को निहार रही थी।
वह तुंरत बोल उठी- ''जी, मैं-मैं इसके साथ हूं। यह पूनम है।''
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