ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
उनके मुंह से यह बात सुनते ही वह झेंप गई। हाथ के पैकेट को उसी तरह थामे वह उनके शयन-कक्ष में चली गई और पैकेट को एक ओर रखकर उनका बिस्तरा ठीक करने लगी।
लाला जगन्नाथ अपनी कमजोर टांगों से धीरे-धीरे चलते हुए बहू के निकट आए और जब बिस्तर ठीक हो गया तो उसपर बैठ गए। बहू ने सावधानी से उनकी टांगों को लिहाफ से ढक दिया और बोली-''खाना खा लिया आपने?''
''नहीं, भूख ही नहीं लगी।''
''तो मैं बना लाती हूं, थोड़ा-सा खा लीजिए।''
'नहीं बहू! आज कुछ अपच हो गया है। बैठे-बैठे हाजमा बिगड़ गया है।''
''मेरी बात मानिए? कुछ दिन के लिए आबोहवा बदलने कहीं चले जाइए। डाक्टर का कहना है, यहां का पानी आपके लिए अच्छा नहीं।''
''वे तो कुछ न कुछ कहते ही रहते हैं। लोग मैदान छोड़कर पहाड़ों में सेहत बनाने आते हैं और मुझे यहां से चले जाने के लिए कहते हैं।''
इतने में अंजना ने पैकेट खोला और वह दुशाला फैलाकर उनके सामने रख दिया। वह शंकित हो पहले तो उस दुशाले और फिर बहू की ओर देखने लगे।
''यह क्या है?''
''आपके लिए! पहले वाला बहुत पुराना और बेकार हो चुका है।''
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