ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
17
संध्या अपना मुंह छिपा रही थी और अंधकार का आवरण धीरे-धीरे नैनीताल की पहाड़ियों को अपने आंचल में समेटता जा रहा था। चारों ओर स्तब्धता का राज्य छाया हुआ था।
अंजना जब घर लौटी तो उसे डर लग रहा था। उसे आने में काफी देर हो गई थी। बाबूजी घर में अकेले बैठे-बैठे उकता चुके होंगे और उसकी वापसी की प्रतीक्षा कर रहे होंगे। यह सोचकर उसका कलेजा धड़कने लगा। वह दबे कदमों से अंदर पहुंची।
बड़े हाल की मद्धिम रोशनी में वह ज्योंही सीढ़ियों की ओर बढ़ी, बाबूजी की आवाज ने उसे चौंका दिया- ''कौन?''
उसने पलटकर हाल के कोने में देखा जहां वे आरामकुर्सी पर बैठे थे। आज वे अपने कमरे में नहीं गए थे। अंजना ने बढ़कर छत की बड़ी बिजली जला दी और उनके निकट आते हुए बोली-''आप! अभी तक सोए नहीं?''
''नहीं, घर की रखवाली भी तो करनी थी!''
''रमिया कहां है?''
''राजीव को सुला रही है।''
''और माली?''
''शाम को ही गांव चला गया-छुट्टी पर।''
''क्यों?''
''उसकी भावज घर से भाग गई है। घरवालों ने उसे बुलवाया है।''
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