ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
|
7 पाठकों को प्रिय 38 पाठक हैं |
एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''लेकिन...''
''एक लाख की पालिसी है। शेखर ने तुम्हारे नाम की हुई है। तुम लोगों के पुराने पते से होकर यहां आई है।''
अंजना ने कांपते हाथों से उन कागजों को पकड़ लिया और पथराई-सी निगाहों से एक बार उन्हें देखा। बीमा कंपनी शेखर का बीमा उसे दे रही थी-उसकी विधवा की जगह। यह ख्याल आते ही उसके दिल में एक ठेस-सी लगी, लेकिन वह संभल गई।
वह उन कागजों को लेकर जाने लगी तो लाला जगन्नाथ ने कहा-''बहू! सबसे पहला काम यही करो और इन कागजों को माली के हाथ कमल के पास भिजवा दो। वह दफ्तर में इनका इंतजार कर रहा होगा। जान-पहचान की वजह से रुपया जल्द मिल जाएगा।''
अंजना अपने कमरे में लौट आई। उसने ध्यान से उस एक लाख की पालिसी को देखा। क्रास लगे निशान, जहां उसे हस्ताक्षर करने थे, गुनाह के धब्बे की तरह नजर आए। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या करे और क्या न करे। एक ओर बाबूजी की आज्ञा और दूसरी ओर दिल की पुकार। वह एक विचित्र असमंजस में फंसी थी।
सहसा उसे कमल को लिखे हुए खत का ख्याल आ गया। उसने अपने तकिये केँ नीचे से वह खत निकाला जिसमें उसका जीवन-रहस्य छिपा हुआ था। वह रहस्य एक ऐसी चिंगारी थी जो अगर सुलग उठती तो न जाने कितनी जिंदगियों को अपनी लपेट में लेकर राख कर देती। लेकिन अंजना से यह सब सहन नहीं हो रहा था और वह यह भी जानती थी कि एक न एक दिन उसके जीवन में यह तूफान आने वाला है। अत: अधिक दिनों तक वह क्यों उसे दबाए रखे! वह अपने-आपको कमल की धरोहर समझ रही थी। आज उसे इस तूफान से अधिक अपनी पूजा पर भरोसा था। उस तपस्या पर विश्वास था जो वह पिछले कई महीनों से करती आ रही थी।
|