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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''तुमने बताया नहीं पूनम!'' अंजना ने अपना प्रश्न दुररहराया।

''जब से उन्होंने मुझसे शादी की, वे घर नहीं गए।''

''क्यों?''

''उनके पिताजी हस शादी के लिए राजी नहीं थे। उन्होंने अपने बेटे से साफ कह दिया था कि उसे दोनों में से एक को चुनना होगा - अपने पिता को या अपनी प्रेमिका को।''

''तब?''

''उन्होंने पूनम को चुन लिया और वह घर सदा के लिए छोड़ दिया।''

यह सुनकर अंजना के दिल को एक चोट लगी। उसे प्यार की उस जीत के सामने अपनी हार का आभास हुआ। एक उसका चाहने वाला था जिसने उसे रास्ते की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया था। वह गुमसुम बैठी अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचती रही। उसे मौन देखकर पूनम ने उसकी शादी के बारे में पूछ लिया जिसे सुनकर वह कांप गई। उत्तर देने के बजाय उसके होंठ कांपने लगे।

पूनम ने अपना प्रश्न दुहराया- ''बताओ ना अंजू! कब है तुम्हारा ब्याह? सुना था जल्दी ही होने वाला है।''

''हो चुका।''

''कब?'' पूनम चौंक पड़ी।

''दो दिन पहले।''
`
''लेकिन तुम...!''

''घर से डोली न उठ सकी। बारात लौट गई।'' सिसकती आवाज में वह बोल पड़ी।

अब की पूनम के दिल को धक्का लगा। क्षण-भर के लिए उसे ऐसा लगा जैसे उसकी सहेली उससे मजाक कर रही हो; लेकिन फिर उसकी पलकों पर आए आंसुओं को देख पूनम का संदेह विश्वास में बदल गया। अंजना की मुद्रा यथार्थ का रूप धारण किए हुए थी।

उसने अंजना का हाथ थाम लिया और उसका दिल हल्का करने के लिए पूरी कहानी सुनाने की जिद की। अंजना ने बिना घटाए-बढ़ाए पूरी कहानी सुना दी।

अंजना के गम ने पूनम को और भी उदास कर दिया। वे कहानियां और किस्से जो वे किताबों में पढ़ा करती थीं, आज यथार्थ का रंग लिए उनकी अपनी ज़िंदगियों को रंगे हुए थे।

पूनम ने उसे दिलासा दिया, बोली- ''अब कहां जाने का इरादा है?''

''यहां से कहीं दूर, जहां मुझे कोई न जाने। कोई अपना न हो, जहां मैं अपना नया जीवन शुरू कर सकूं।''

''औरत की ज़िंदगी को तो मर्द का सहारा चाहिए। उस नाव की मंजिल क्या जिसका खेवनहारा न हो!''

''लेकिन मुझे अब मर्दो से घृणा-सी हो गई है। मैंने जीवन-भर विवाह न करने का फैसला कर लिया है।''

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