ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
|
7 पाठकों को प्रिय 38 पाठक हैं |
एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''क्यों?''
''जरा उनसे काम था।''
''तो अन्दर चले जाओ, मिल लो जाकर।''
''नहीं, मुझे तुम्हारे कुत्ते से डर लगता है।''
''अरे वह तो किसी को कुछ नहीं कहता! हां, चोर-उचक्कों को तुरत पहचान लेता है।''
रमिया की बात सुनकर उसकी सांस एक क्षण के लिए गले में अटककर रह गई, लेकिन उसने अपनी घबराहट छिपाते हुए पूछा-''उस दिन तुमने वह खत मालकिन को दे दिया था ना?''
''हां, और उन्होंने आगे कोई और खत लेने के लिए मना कर दिया है।''
''कहीं तुमने मालकिन से यह तो नहीं कह दिया कि मैंने तुम्हें इनाम दिया था?''
रमिया इस सवाल पर चिहुंक उठी और उसने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया।
बनवारी ने तुरत जेब से दस रुपये का एक नोट निकाला और उसकी ओर बढ़ाता हुआ बोला-''यह लो, रख लो।''
''आज कोई और चिट्ठी देनी है उन्हें?''
''नहीं, यों ही दे रहा हूं। तुम्हारा मामूली तनख्वाह से क्या बनता होगा!''
|