लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

38 पाठक हैं

एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''क्या बहू रानी?''

''ये सब कपड़े प्रेस कर ले, आज मेरा जी नहीं चाहता।''

यह कहकर अंजना बगिया की ओर चली। जाते-जाते कुछ सोचकर रुकी और रमिया से बोली-''कोई मुझे पूछे तो कह देना-यहीं हैं, सामने पेड़ों के तले।''

अंजना बिना कुछ उत्तर दिए उपवन के उस ओर चली गई जो जंगल से मिलता था। घने पेड़ों के झुंड में जाकर वह ओभल हो गई। रमिया ने आज से पहले कभी बहू रानी को इतना खुश नहीं देखा था।

अभी तक उसके कानों में बहू रानी के ये शब्द निरंतर गूंज रहे थे-'ये कपड़े प्रेस कर ले। आज मेरा जी नहीं चाहता।'

वह इस बात की गहराई समझे बिना कंधे झटककर रह गई और जल्दी-जल्दी कपड़े समेटने लगी।

इतने में उसके कानों में एक भनभनाहट की सी आवाज आई। पहले तो उसे लगा जैसे किसी जानवर की आवाज हो, लेकिन जब वह आवाज दो-तीन बार और सुनाई दी तो वह चौकन्नी हो गई और घूमकर उस ओर देखने लगी जिधर से वह आवाज आ रही थी।

घास पर सूखे पत्तों की एक सरसराहट उभरी और इसके साथ ही बनवारी का चेहरा एक पेड़ के तने के पीछे से उभरा। वह इशारे से उसे अपने पास बुला रहा था।

पहले तो रमिया उसे वहां देखकर डर गई, लेकिन फिर चारों ओर किसी और को न देखकर वह धीरे-धीरे उस ओर बढ़ गई। बनवारी ने उसे और पास आने का संकेत किया।

''क्या बात है?''

''तुम्हारी मालकिन कहां हैं?''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book