ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
13
अंजना मंदिर से लौट आई थी। रमिया और राजीव उसके साथ थे। राजीव आज चार-छ: दिन से बीमार था। बुखार उतरते ही मां के कहने से वह उसे देवी मंदिर में ले गई थी। शेखर की मौत के बाद शांति हर छोटी से छोटी बात पर भी वहम करने लगी थी। इसीलिए उसने बहू को मजबूर किया कि वह राजीव को देवी मंदिर में ले जाए और देवी के चरणों की धूल राजीव के मस्तक पर लगाए।
ज्योंही अंजना ने दालान में कदम रखा, एक सुरीली और अनजानी चहचहाहट सुनकर वह वहीं ठिठक गई। रमिया भी उन आवाज़ों पर चकित होकर अपनी मालकिन का मुंह ताकने लगी। सदर हाल से कई लड़कियों की वार्ता की आवाजें आ रही थीं। उस घर में इन अनजानी आवाज़ों को सुनकर अंजना कुछ चिंतित-सी हो गई।
डरते-डरते उसने हाल में कदम रखा। उसका अनुमान गलत नहीं था। वहां तीन नहीं चार लड़कियां विराजमान थीं और बैठी चाय पी रही थीं। बाबूजी उनके पास बैठे गप्पें लड़ा रहे थे और शांतिदेवी उनके स्वागत में लगी हुई थीं। वह वहीं दरवाजे के पास ठिठक गई और चकित हो उन अपरिचित लड़कियों को निहारने लगी।
उन लड़कियों की नजरें ज्योंही अंजना पर पड़ी, वे सबकी सब चुप हो गईं और उसकी ओर देखने लगीं। निगाहें मिलते ही अंजना ने सिर झुका लिया और चुपचाप दो कदम आगे बढ़ गई। लाला जगन्नाथ उनका अचरज और चुप्पी दूर करने के लिए बोले-''मेरी बहू, पूनम।''
''पूनम! कितना प्यारा नाम है!'' उनमें से एक बोली।
''और देखने में भी पूनम का चांद!'' एक दूसरी दांतों तले जबान दबाती हुई धीरे से बोली
''लेकिन इस चांद को दाग लग गया।'' शांति ने तुरत उनकी चुलबुलाहट को गम्भीरता में बदल दिया।
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