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कटी पतंग
कटी पतंग
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9582
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आईएसबीएन :9781613015551 |
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''तो चली जाओ।'' बनवारी ने विषाक्त मुस्कान की बिजली उसपर गिराई।
वह उसके तेवर देखकर घबरा उठी और तेजी से पलटकर जाने लगी, लेकिन बनवारी की आवाज ने उसके कदम बांध दिए।
''मुझसे तो मुंह मोड़कर चली जाओगी लेकिन सच्चाई से कैसे मुंह मोड़ोगी अंजू।''
''वह अंजू मर गई बनवारी! उसे अब भूल जाओ।''
''जब पूनम बनकर भी तुम अंजू को नहीं भूल सकीं तो मैं कैसे भूल सकता हूं!''
''अब तुम्हें मुझसे क्या लेना...''
''तुम्हारे चमके हुए भाग्य में हिस्सा बंटाना है।''
''तुम मेरे कौन होते हो? मेरा-तुम्हारा साथ तो उसी दिन छूट गया जब तुमने मुझसे दगा की और धोखा दिया।''
''मैं मानता हूं, मैंने तुम्हें धोखा दिया; लेकिन आज तुम क्या कर रही हो? तुम भी तो किसी घराने की बहू बनकर उन सबको धोखा दे रही हो।''
''बनवारी!'' थरथराती हुई आवाज वृक्षों के झुरमुट में गूंज उठी।
''लेकिन जवाब नहीं तुम्हारा भी! कितना बड़ा हाथ मारा है! मैं तो ज़िंदगी-भर झक मारता रहा! अब तुम्हें गुरु मानता हूं।''
''किसी अभागिन को यूं सताते दया नहीं आती?''
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