ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
12
संध्या का समय था, छ: बजने वाले थे। नेहरू पार्क में बनवारी पेड़ों के साये तले खड़ा बड़ी बेचैनी से अंजना की राह देख रहा था। उसे पूरा विश्वास था कि वह मिलने के लिए जरूर आएगी; लेकिन जब वह उन पेड़ों से हटकर पार्क में देखता तो दूर तक अंजना का कोई निशान न देखकर उसका दिल बुझ जाता। घड़ी की सुइयां छ: बजा रही थीं। ठंडी हवा के झोंके से बचने के लिए उसने एक वृक्ष के तने का सहारा ले लिया और सिगरेट सुलगाकर लंबे-लंबे कश लेने लगा। मुंह से धुआं निकलते ही उस ठंडी हवा में जम-सा जाता।
पहाड़ों में सूर्य के जल्द छिप जाने से एक सांवला-सा अंधेरा फैलता जा रहा था। ज्यों-ज्यों उसकी व्याकुलता बढ़ रही थी, उसका दम घुटने लगता था। वह फिर से अपने दिल में तरह-तरह के मंसूबे बांधने लगता। वह अपनी खोई हुई दुनिया मेंजीवन की एक आशा लिए नैनीताल आया था।
सहसा पास में वृक्षों से गिरे हुए सूखे पत्तों पर किसी के चलने की आहट आई। उसने पलटकर घनी झाड़ियों की ओर देखा जहां अंजना अभी-अभी आकर रुकी थी। उसे देखते ही उसकी आंखों में चमक आ गई। उसके सर्द और नीले होंठों पर एक मुस्कराहट पैदा हो गई। वह ललचाई नजरों से उसकी ओर देखने लगा।
अंजना उसकी गहरी और भूखी निगाहों की ताब न ला सकी। बोली-''मुझे यहां क्यों बुलाया है?''
''मैंने नहीं बुलाया है, तुम्हारी मजबूरियां तुम्हें यहां खींचकर ले आई हैं।''
''मेरी कोई मजबूरी नहीं।'' वह झुंझला उठी।
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