ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
यह सोचते ही उसकी आंखों में आंसू आ गए, लेकिन वह पी गई। सर्द हवा से बचने के लिए उसने आंचल से अपना सिर ढक लिया। जभी उसने देखा कि बिजली के खम्भे का सहारा लिए कोई खड़ा बीड़ी के कश लगा रहा है और उसकी ओर घूर-घूरकर देख रहा है। फिर उस अजनबी ने बीड़ी का एक लम्बा कश खींचा और उसे एक ओर फेंककर कह उठा- ''तुम अंजू हो ना? लाला राजकिशन की भांजी...जिसकी ड्योढ़ी से बारात लौट गई?''
अंजना को लगा जैसे उसने एक जहरीला नश्तर उसके दिल की गहराइयों में उतार दिया हो। उसके दिल में फिर से एक बवंडर उठ खड़ा हुआ। उसका वश चलता तो वह उस आदमी का मुंह नोचकर आंखें बाहर निकाल लेती जो उसे पहचानकर चोट करने का साहस कर रहा था, लेकिन वह दिल मसोलकर रह गई। उसने वह बेंच छोड दी और उस ओर बढ़ चली जिधर बिजली की कई बत्तियां एकसाथ जगमगा रही थीं। वह आदमी एक फुसफुसी-सी हंसी हंसकर रह गया।
फर्स्ट क्लास के वेटिंग रूम में घुसने से पहले अंजना ने पलटकर चोर-निगाहों से देखा। वह अभी तक वहीं खड़ा उसी की ओर देख रहा था। अंजना ने वेटिंग रूम का दरवाज़ा अन्दर से बन्द कर लिया।
कमरा खाली था, लेकिन एक लंबी-चौड़ी कुर्सी पर एक नन्हा-सा बच्चा पड़ा चिल्ला रहा था। उस नन्ही-सी जान को वहां देखकर पहले तो उसका दिल धक् से हो गया, लेकिन फिर संभलकर वह इधर-उधर देखने लगी। वहां कोई नहीं था। वह यह सब देख घबरा उठी। विकल हो एक बार ध्यान से उसने बच्चे की ओर देखा और फिर किसी आहट को सुनकर ठिठक गई।
नजरें उठाकर सामने देखा तो बाथरूम से कोई लड़की बाहर निकल रही थी। उसके हाथों में एक बर्तन था जिसमें से गरम पानी भाप छोड़ रहा था। दोनों ने पल-भर के लिए एक-दूसरे की ओर देखा और फिर उस लड़की ने जैसे चिल्लाकर पुकारा-''अंजू!''
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