ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''रमिया कहां है?'' क्रोध से वह गरज उठी।
''मेरे लिए चाय लेने गई है।''
''किसकी इजाजत से?''
''मेरी इजाजत से। अपना घर समझकर यह धृष्टता कर बैठा।''
''तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था।''
''क्यों?'' उसके अधरों पर एक दुष्ट मुस्कान उभरी।
अंजना ने घबराहट और घृणा से एक नजर उसके चेहरे पर डाली जो सुर्ख हो रहा था।
बनवारी ने उसकी गरम नजरों की आंच का अंदाजा किया और अपने भद्दे चेहरे पर एक निशान को उंगलियों से छूते हुए बोला-''यह शिब्बू की निशानी है। रात उसका मेहमान था। यहां होटल में साली ने शराब के नशे में इतने जोर से काटा कि अभी तक निशान बाकी है।''
अंजना के होंठ भय और क्रोध से थरथरा रहे थे। चेहरे पर एक रंग आ रहा था और एक जा रहा था। राजीव ने लपककर मां को पकड़ लिया और उसे चाभी वाली मोटर दिखाने लगा जो बनवारी उसके लिए लाया था। अंजना ने उसके हाथ से वह खिलौना छीन-कर एक ओर फेंक दिया। राजीव रोने लगा।
इतने में रमिया चाय की ट्रे संभाले आ गई। उसने चकित दृष्टि से दोनों को देखा और ट्रे मेज पर रखकर रोते हुए राजीव को बाहर ले गई।
''मैं आज पछता रहा हूं अंजू!''
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