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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


नर्तकी उसके पास आकर खड़ी हो गई और अपने बैग में से लिपस्टिक निकालकर अपने होंठों पर चढ़ाने लगी। उसे मेकअप करते देख अंजना ने अपनी नजरें झुका लीं और साड़ी का आंचल जल्दी-जल्दी साफ करने लगी। नर्तकी ने इठलाते हुए उसकी ओर देखा और एक गहरा सांस लेते हुए बोली- ''आंचल पर पड़े धब्बे तो इस पानी से धुल जाएंगे, लेकिन जीवन के आंचल में पड़े धब्बे इतनी आसानी से नही धुल सकते।''

यह वाक्य सुनते ही अंजना के हृदय में एक-हूक उँठी और वह टुकुर-टुकुर उसकी ओर देखने लगी। इठलाती मुस्कान अभी तक नर्तकी के सुर्ख अधरों पर नृत्य कर रही थी।

उसने अंजना के अचरज का अनुमान लगाते हुए पूछा-''क्यों, क्या ख्याल है अंजू?''

'मैं समझी नहीं, तुम क्या कहना चाहती हो!'' अंजना ने गीले आंचल को निचोड़कर अपनी बांह पर फैला लिया और प्रश्न-सूचक दृष्टि से उसकी ओर देखने लगी।

"शायद तुमने मुझे पहचाना नहीं?''

''कौन हो तुम?''

''शबनम, तुम्हारे बनवारी की शिब्बू।''

बनवारी का नाम सुनते ही उसे लगा जैसे किसी ने उसके कान में गरम शीशा उंडेल दिया हो। जैसे चोटी से पांव तक शीत लहर दौड़ गई हो। वह पथराई नजरों से उसकी ओर देखने लगी जो अभी तक एक छोटी एक बड़ी आंख किए उसे निहार रही थी।

''यहां क्या कर रही हो अंजू? ये तुम्हारे साथ दूसरे लोग कौन हैं?''

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