ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
|
7 पाठकों को प्रिय 38 पाठक हैं |
एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''साड़ी पर चाय का गिर जाना।''
एक क्षण के लिए दोनों मां-बेटी कमल के इस वाक्य पर सोचती-विचारती रहीं और फिर एकसाथ जोर से हंस पड़ी। कमल ने भी उनका साथ दिया।
हाल पार करके अंजना जब बाथरूम पहुंच रही थी तो उसकी निगाहें एक क्षण के लिए फिर जम गईं। होटल की वह डांसर हाल के एक कोने में कुछ लोगों के साथ बैठी हुई थी। अंजना को देखते ही वह फिर उसे घूरने लगी। अंजना गर्दन नीची किए तेजी से बाथरूम में चली गई।
उसकी घबराहट पहले से कहीं अधिक बढ़ गई थी। उसकी समझ में इसका कारण नहीं आ रहा था कि वह नर्तकी उसे क्यों इस तरह घूर रही है। वह अपने-आपको दुनिया की निगाहों से छिपाकर रखना चाहती थी, लेकिन न जाने कैसे कोई न कोई उसकी जिन्दगी के दोराहे पर उसे पहचानने का प्रयास करने लग जाता था। उसके मन में अभी तक उस नर्तकी जैसी कोई सूरत नहीं आ रही थी जो उसने कभी देखी हो। उसने अपनी चेतना के पदों को उलट-पलटकर बारी-बारी अपने कालेज की सारी लड़कियों के चेहरों को याद करने की कोशिश की लेकिन कोई मुखड़ा ऐसा नहीं मिला जो उस नर्तकी से मिलता-जुलता हो।
वह नल का सहारा लिए अपना आंचल साफ कर रही थी कि सहसा दरवाजा खुलने की आवाज आई और उसके साथ ही उसका दिल उछलकर उसके हलक में आ अटका। सामने की दीवार में लगे आईने में उस नर्तकी का प्रतिबिंब देखकर वह रोमांचित हो उठी।
|