ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
‘आपकी यह बेचैनी, यह उदासी से भरा चेहरा और यह साँझ का वह समारोह सब कुछ बता रहा है।’
‘मैं भी तो कुछ सुनूँ।’
‘शायद मेरा अनुमान ठीक न हो – अच्छा आज्ञा।’
‘कहाँ चल दिए?’
‘अपने घर।’
‘हमें यूँ अकेला छोड़कर।’
‘कहिए?’
‘क्या वह मान जायेंगे?’ हरीश ने झिझकते हुए पूछा।
‘कौन?’
‘ठाकुर बाबा।’
हरीश के मुख से यह उत्तर सुनकर माधो मुस्कुराया और बोला –
‘क्यों नहीं, उनके भाग्य खुल जायेंगे और फिर माधो चाहे तो क्या नहीं हो सकता।’
‘माधो तुम्हें मैं एक मित्र के नाते यह सब कुछ कह रहा हूँ।’ और हरीश ने लजाते हुए अपना मुँह फेर लिया।
दूसरी साँझ समाप्त होते ही माधो ठाकुर बाबा के घर पहुँचा। वह बरामदे में बैठ माला के मनके फेर रहे थे। माधो को देखते ही उठ खड़े हुए और उसे कमरे में ले गए। बाहर अभी तक ठंडी हवा चल रही थी। कैसा जाड़ा था उस रोज।
‘कहिए तबियत तो अच्छी है?’ माधो ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।
‘जरा सर्दी के कारण खाँसी है।’
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