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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

अतिथियों की आवभगत के बाद हरीश प्रसन्नतापूर्वक सीढ़ियाँ चढ़ता अपने कमरे में जा पहुँचा और सामने की कुर्सी पर बैठ मन-ही-मन मुस्कुराने लगा। वह जानता था कि वे लोग इतने दिलचस्प हैं वरना वह इतना समय इनसे दूर क्यों रहता। दिन-रात कंपनी में काम करने के सिवाय कुछ सूझता ही न था, परंतु आज उसे नीरस जीवन में एक आशा की झलक दीख पड़ी। वह सोच ही रहा था कि उसकी दृष्टि फूल पर पड़ी जो सामने धरती पर गिर पड़ा था। वही फूल उसने पार्वती के हाथों में दिया था। यह देखते ही वह कुछ निराश-सा हो गया और सोचने लगा कि यह फूल वह साथ नहीं ले गई? यह प्रश्न रह-रहकर हरीश के मस्तिष्क में चक्कर काटने लगा। दो घड़ी की प्रसन्नता के बाद वह उदास सा हो गया। क्या प्रसन्नता दो घड़ी की ही थी? क्या वह सदा यूँ प्रसन्न नहीं रह सकता? उसे ऐसा अनुभव हुआ, जैसे उसने कुछ पाकर खो दिया हो। उसी समय सामने, दरवाजे से माधो ने प्रवेश किया।

‘क्यों सरकार यह खामोशी कैसी?’

‘हूँ, नहीं, अभी सबको नीचे छोड़कर आ रहा हूँ?’

‘क्यों आज का प्रोग्राम कैसा रहा?’

‘बहुत अच्छा।’

‘परंतु फिर आपके मुख पर उदासी क्यों?’

‘उदासी – नहीं तो, बल्कि आज मैं प्रसन्न हूँ – बहुत प्रसन्न।’

‘वह तो आपको होना ही चाहिए। आज की साँझ तो खूब अच्छी बीती होगी।’

‘तुम ठीक कहते हो माधो, परंतु दिन-रात कंपनी के काम में इतना तल्लीन हो गया कि कभी इस ओर ध्यान नहीं गया।’

‘कभी-न-कभी आप लोगों को इनसे मिलना चाहिए। विचार बदलना, मिल-जुल के उठना-बैठना, यह मनोरंजन मनुष्य के जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है।’ माधो कह रहा था।

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