ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
‘फिर क्या है? क्या सोच रहे हो इतनी गंभीरता से?’
‘अपने भाग्य की रेखाओं को पढ़ रहा हूँ।’
‘कैसे?’
‘वह आश्रम वाले महात्मा कहते थे... कि तुम्हारे प्रेम में सिवाय ‘तड़प’ और जलन के अलावा कुछ नहीं है और जलन भी ऐसी कि एक दिन वह जलन सारे संसार को जलाएगी।’
‘तुम्हें तो सुनकर प्रसन्न होना चाहिए। जब जलोगे नहीं तो ऊपर उठोगे कैसे?’
‘पगली।’ और राजन ने अपने हाथ उसकी आँखों पर रख दिए और फिर से ‘सीतलवादी’ की ओर देखने लगा।
जब दोनों घर पहुँचे तो राजन का दिल डर के मारे बैठा जा रहा था। पार्वती की दशा देख बाबा क्या कहेंगे? क्या फिर भी उसके साथ आने देंगे उसे? यह सोचते हुए राजन ने भीतर प्रवेश किया और पार्वती को ले धीरे-धीरे कमरे की ओर बढ़ने लगा।
बाबा ने जब पार्वती को देखा तो पहले तो घबराए और दोनों को खूब डाँटा परंतु जब वृत्तांत सुना तो उन्हें कुछ धीरज हुआ। जब उन्होंने यह सुना कि गुरुदेव ने स्वयं अपने हाथों से दवा-दारू की तो प्रसन्न हुए कि चलो इसी बहाने पार्वती ने एक महापुरुष की सेवा का दान लिया।
बाबा ने गर्म दूध मंगवाकर पार्वती को पिलाया और उसके पास बैठ उसे प्यार से सुलाने लगे। बाहर बादलों की गड़गड़ाहट ने राजन को चौंका दिया। अब तक वह सामने खड़ा पार्वती की ओर देख रहा था। उसने अपना ‘मिंटो वायलन’ उठाया और बाबा को नमस्कार कर एक दृष्टि पार्वती पर फेरता हुआ कमरे से बाहर हो लिया। सफेद बादलों ने जब काली का रूप धारण कर लिया था और धीमी-धीमी बूँदें पड़ रही थीं। राजन जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता अपने घर की ओर जा रहा था परंतु उसकी आँखों के सामने अब पार्वती की मुस्कुराती सूरत घूम रही थी।
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