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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

‘और फिर मैं भी तो साथ हूँ।’ राजन ने उस मनुष्य की बात को पूरा करते हुए कहा।

‘तो क्या तुम मुझे डरपोक समझते हो?’ पार्वती बोली और उछलकर खाली डिब्बे में जा बैठी।

उसकी पहल देख राजन हैरान हुआ और – मिंटो वायलन उसे पकड़ा कर आप भी डिब्बे में जा बैठा। पार्वती डिब्बे में बेधड़क बैठ गई पर उसका मन बैठा जाता था। धीरे-से उस आदमी से पूछने लगी - ‘तो अंदर काफी अंधेरा होगा!’

‘यूँ जानो एक अंधेरी रात।’

राजन पार्वती का यह प्रश्न सुनकर हँसने लगा और हँसी को रोकते हुए बोला –‘काश! अंधेरी रात के बदले चाँदनी रात होती।’

उस मनुष्य ने कहा –‘तो चाँद ला दूँ।’

पार्वती यह सुन झट बोली –‘वह कैसे?’

‘लैंप से, हमारे पास अंदर ले जाने वाले लैंप भी हैं।’

राजन बोला - ‘उसकी क्या आवश्यकता है?’

‘क्यों नहीं।’ पार्वती ने उत्तर में कहा और फिर उस आदमी से बोली - ‘भाई यदि कष्ट न हो तो....।’

‘मैं समझ गया, अभी लाया’ और वह लैंप के लिए एक ओर को भागा। लैंप का नाम सुनकर पार्वती को ढाँढस बंधा और वह उसकी प्रतीक्षा करने लगी। परंतु उसके लौटने से पहले डिब्बे चल पड़े। ये देख उसका चेहरा फिर उतरने लगा – परंतु राजन उसकी इस हार पर प्रसन्न था, बोला -

‘क्यों चाँद नहीं मिला?’

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