ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
‘तुम तो जानते ही हो कि कल काम बंद रहेगा। तार पर थैलियों के स्थान पर बिजली से चलने वाला एक बड़ा टब लगवाया जाएगा। वह एक ही बार में कोयले की दस थैलियों को नीचे ले जाएगा।’
‘तो फिर!’
‘आज जितना कोयला है वह सब नीचे पहुँचा दो। प्रातःकाल मालगाड़ी जाती है। यह करीब दो घंटे का काम होगा, इसके बदले कल दिन भर छुट्टी, अब तो प्रसन्न हो न?’
‘जी..!’ राजन ने धीरे से उत्तर दिया, वह वहीं खड़ा रहा। उसे यह भी पता न चला कि दोनों कब चले गए। उसके मन में बार-बार यही विचार उत्पन्न हो रहा था कि पार्वती राह देखेगी। जब वहाँ न पहुँचेगा तो निराश होकर घर लौट जाएगी। उसने घूमकर एक दृष्टि कोयले के ढेर पर डाली। उसके मुँह से यह शब्द निकल पड़े –‘इतना ढेर, दो घंटे का काम-केवल दो घंटे का?’ अचानक उसका चेहरा तमतमा आया और वह मजदूरों की ओर बढ़ा और उन्हें काम के लिए कहा – स्वयं ही बेलना उठा थैलियों में भरने लगा। मजदूरों ने भी मन से उसका साथ दिया। इस प्रकार वह सब मिलकर काम करने लगे। सबके हाथ मशीन की भांति चल रहे थे सारे दिन की थकावट का उन पर कोई असर न था। आज वह घंटों का काम मिनटों में समाप्त करना चाहते थे।
दूसरी ओर माधो अचंभे में था कि आज थैलियाँ इतनी तेजी से क्यों आ रही हैं? अभी एक समाप्त भी न हो पाती तो झट से दूसरी जा पहुँचती। वह यह सोचकर आश्चर्यचकित था कि आज इतनी फुर्ती कैसी? परंतु बेचारा माधो क्या जाने कि प्यार की मंजिल पहुँचने तक मनुष्य कैसे फुर्तीला हो उठता है?
मैनेजर का अनुमान गलत था परंतु फिर भी सबने मिलकर काम दो घंटे में समाप्त कर लिया। काम के बाद मजदूर इसलिए प्रसन्न थे कि दो घंटे के पश्चात् उन्हें पूरे दिन की छुट्टी है। परंतु राजन के लिए यह दो घंटे भी कितने कीमती थे। उसने काम की समाप्ति पर अपने कपड़ों को झाड़ा और रजिस्टर उठा स्टेशन की ओर देखा। सूरज डूब चुका था – अभी उसे हिसाब मिलाने भी जाना था। नीचे जाने को भी समय चाहिए, पहले तो उसने सोचा न जाऊँ, परंतु फिर अपनी जिम्मेदारी का ध्यान आते ही ऐसा न कर सका। आखिर उसने जाने का निश्चय कर लिया।
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