ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
राजन चौंका – उसके हाथ पार्वती के शरीर से अलग हो गए – राजन बोला - ‘क्या है?’
‘वह देखो सामने।’ वह हाथ से संकेत करते हुए बोली।
राजन ने घूमकर देखा – चारों ओर जल के सिवाय कुछ न था, वह फिर बोला –
‘क्या है पारो?’
पर यह शब्द उसकी जबान पर आते-आते रुक गए। उसने देखा कि पार्वती उससे काफी दूर खड़ी मुस्कुरा रही थी। वह उसकी ओर बढ़ने लगा। पार्वती बोली - ‘धरती छोड़, अब क्या जल में ही रहने का निश्चय कर लिया है?’
‘जी हाँ, मछलियाँ जल में रहना पसंद करती हैं।’
‘मछलियाँ तो रहना पसंद करती हैं परंतु शिकारी का जल में क्या काम?’
‘शिकारी बेचारा क्या करे, मछली को बाहर खींचते-खींचते स्वयं ही जल में खिंच गया।’
‘बिना किसी फंदे के?’
‘नहीं तो, इस बार तो ऐसा फंदा पड़ा कि मछली तथा शिकारी दोनों उसमें फँस गए।’
‘कैसा फंदा?’
‘प्रेम का।’
‘अब यहाँ से जाओ भी, तुम्हें तो हर समय दिल्लगी ही सूझती है।’
‘तुम्हें जाना हो तो जाओ, मैं तो स्नान करके आऊँगा।’
‘परंतु बाहर निकलूँ कैसे?’
‘लाज लगती है? निर्लज्ज बन जाओ।’
‘तुम्हारी तरह।’
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