ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
वह सोच ही रहा था कि किवाड़ खुले और पार्वती ने अंदर प्रवेश किया – उसके हाथों में गिलास था।
‘यह क्या?’
‘दूध।’
‘किसलिए?’
‘तुम भूखे हो न।’
‘तुम्हें किसने कहा?’
‘तुम्हारी आँखों ने – तुमने बाबा से झूठ कहा था न!’
‘हाँ पार्वती... और तुम भी तो...।’
‘हाँ राजन आज से पहले मैं कभी झूठ नहीं बोली – न जाने...।’
‘कोई बात नहीं, यौवन के उल्लास में अक्सर झूठ बोलना ही पड़ता है।’
‘अच्छा, अच्छा दूध पी लो, मैं चली...।’
‘ठहरो तो – देखो, तुम्हारे लिए मैं कुछ लाया हूँ।’
‘चॉकलेट!’ पार्वती ने प्रसन्नता से हाथ बढ़ाया और कुछ समय तक चुपचाप खड़ी रही, आँखें छलछला आईं।
राजन घबराते हुए बोला - ‘क्यों क्या हुआ?’
‘यूँ ही बाबूजी की याद आ गई – बचपन में वह भी मुझे हर साँझ को कैंटीन से चॉकलेट लाकर दिया करते थे।’
‘ओह...! अच्छा यह आँसू पोंछ डालो और लो...।’
‘परंतु तुमने बेकार पैसे क्यों गवाएँ?’
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