लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान

जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

253 पाठक हैं

हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

राजन इन्हीं विचारों में डूबा हुआ घर पहुँच गया, परंतु पार्वती वहाँ न थी। राजन ने जाते ही बाबा के पाँव छुए और अपना पहला वेतन उनके चरणों में रख दिया – बाबा ने सवा रुपया भगवान के प्रसाद का रखकर बाकी लौटा दिए तथा आशीर्वाद देते हुए बोले, ‘भगवान की कृपा-दृष्टि सदा तुम्हारे पर बनी रहे बेटा, मैं यही कहता हूँ।’

‘पार्वती कहाँ है बाबा?’

‘मंदिर गई होगी।’

‘राजन यह सुनते ही ड्योढ़ी की ओर बढ़ा।’

‘क्यों कहाँ चले?’

‘होटल, भोजन के लिए।’

यह कहता हुआ राजन बाहर की ओर हो लिया, परंतु आज उसे भूख कहाँ? वह तो पार्वती से मिलने को बेचैन था। वहाँ से सीधा मंदिर पहुँचा और सीढ़ियों के पीछे खड़ा पार्वती की प्रतीक्षा करने लगा। जब सीढ़ियाँ उतर पार्वती राजन के समीप से गुजरी तो राजन ने उसे पकड़ते हुए अपनी ओर खींचा। पार्वती भय के मारे चीख उठी परंतु राजन ने शीघ्रता से उसके मुँह के आगे हाथ रख दिया और बोला - ‘मैं राजन हूँ।’

‘ओह! मैं तो डर गई थी। अभी चीख सुन दो-चार मनुष्य इकट्ठे हो जाते तो।’

‘तो क्या होता? यह कह देते कि आपस में खेल रहे थे।’

‘काश! यह सत्य होता।’

‘मैं समझा नहीं।’

‘यही कि आपस में खेल सकते।’

‘तो अब क्या हुआ है?’

‘होना क्या है, बचपन कहाँ से लाएँ?’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai