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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579
आईएसबीएन :9781613013069

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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

‘मैं आग लगाने वाले से बदला लूँगा।’

‘तो तुम्हारा प्रेम सच्चा प्रेम नहीं, एक भूख है – जो तुम्हें पिशाच बनने के लिए विवश कर रही है। सच्चा प्रेम आत्मा से होता है, इस नश्वर शरीर से नहीं।’

‘मेरी यह जलन, तड़प, बेचैनी और आँसू – क्या यह सब धोखा है माँ?’

‘हाँ – सब धोखा है। तेरे प्रेम को किसी ने नीलाम नहीं किया, बल्कि तू स्वयं अपने प्रेम को भरी सभा में नीलाम करने जा रहा है। यह प्रेम की नहीं बल्कि तेरी मनुष्यता और उस माँ की नीलामी होगी जिसकी कोख से तूने जन्म लिया है।’

‘माँ!’ राजन क्रोध से चिल्लाया। उसके नेत्रों से शोले बरस रहे थे। राजन ने दाँत पीसते हुए एक बार उधर देखा और फिर आकाश की ओर देखने लगा, जहाँ आतिशबाजी के रंगीन सितारें टूट रहे थे। बेचैनी से बोला-

‘माँ! देख उधर आकाश में बिखरते मेरे दिल के टुकड़ों को – देख, मैं आज नहीं रुकूँगा। शम्भू ने भी मुझे रोकना चाहा था परंतु कुछ न कर सका। भगवान ने राह में कई संकट ला खड़े किए परंतु वे भी मेरा कुछ न कर सके। आज मुझे कोई भी न रोक सकेगा – न किसी के आँसू और न किसी की ममता।’

‘परंतु शायद तू नहीं जानता कि माँ के आँसुओं में भगवान से अधिक बल है।’

यह कहते ही वह दरवाजे के करीब पहुँचा और कुंडे में ताला लगा देख रुक गया। एक कड़ी दृष्टि माँ पर फेंकी फिर हथौड़ा लेकर कुंडे पर दे मारा। कुंडा ताला सहित नीचे आ गिरा। वह विक्षिप्त सा एक विकट हँसी हँसते हुए बाहर निकल गया। माँ खड़ी देखती रह गई।

राजन शीघ्रता से हरीश के घर की ओर बढ़ रहा था। लंबा रास्ता छोड़ वह बर्फ के ढेरों के ऊपर से जाने लगा। उसके कानों में माँ की पुकारें आ रही थीं जो शायद उसका पीछा कर रही थीं और ‘राजी -राजी’चिल्ला रही थीं। उसका शरीर काँप रहा था, पाँव लड़खड़ा रहे थे। बर्फ पर फिसलते ही वह संभल जाता और पाँव जमाने का प्रयत्न करता। शहनाइयों और आतिशाबाजियों का शोर बढ़े जा रहा था। जब आतिशबाजी आकाश पर फटती तो धमाके के साथ राजन के दिल पर चोट-सी लगती। ऐसा लगता जैसे उसके दिल पर कोई हथौड़े से वार कर रहा हो।

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