ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
‘कौन नहीं चाहता कि उसकी बेटी ऊँचे कुल की बहू बने, फिर पार्वती जैसी बेटी – आज पार्वती का पिता जीवित होता, तो दूर-दूर के लोग न्यौता लेकर आते।’
‘तो अब क्या कमी है – आपका खानदान, शान तथा मान तो वही है।’
सुनकर बाबा की आँखों में एक प्रकार की चमक आई और मिट गई। फिर बोले - ‘परंतु माधो आजकल खानदान तथा मान को देखता कौन है। सबकी निगाह लगी रहती है धन की ओर।’
‘परंतु हरीश बाबू तो ऐसे नहीं है।’
‘किसी के हृदय को तुम क्या जानो?’
‘सच ठाकुर साहब – आपकी पार्वती वह बहुमूल्य रत्न है जिसे संसार-भर के खजाने भी मोल नहीं ले सकते?’
‘तो क्या हरीश मान जाएगा?’
‘यह सब कुछ आप मुझ पर छोड़ दीजिए। पार्वती जैसी बेटी आपकी, वैसी मेरी।’
इतने में कमरे का किवाड़ खुला और पार्वती ने मंदिर के पुजारी के साथ भीतर प्रवेश किया। माधो बाबा से आज्ञा ले सबको नमस्कार कर बाहर चला गया।
माधो सीधा वहाँ से हरीश के घर पहुँचा और सारा समाचार हरीश से कहा। हरीश की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। रात बहुत बीत चुकी थी, माधो तो सूचना देकर घर चला गया परंतु हरीश विचारों की दुनिया में खो गया। उसके सामने निरंतर पार्वती की सूरत घूम रही थी। प्रसन्नता से पागल हो रहा था वह।
दूसरी साँझ हरीश जब माधो को साथ ले बाबा के घर पहुँचा, तो यह जान उसे अत्यंत दुख हुआ कि बाबा की तबियत गिरती जा रही है। पार्वती ने उन्हें बताया कि वह पुजारी से बहुत समय तक बातें करते रहे। बातें करते-करते ही उन्हें दौरा पड़ा और मूर्छित हो गए। दवा देने से तुरंत होश में आ गए। वह और पुजारी सारी रात उनके पास बैठे रहे। पुजारी अब भी उनके पास है।
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