ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
‘घबराने की कोई बात नहीं, अच्छा मैनेजर।’
‘अच्छा रामू जरा बैग उठा लाना।’
हरीश और डॉक्टर दोनों बाहर की ओर चले गए – रामू भी बैग लिए उनके पीछे हो लिया। पार्वती हाथ में जल का लोटा लिए चुपचाप उनकी ओर देखती रही। थोड़ी ही देर बाद हरीश लौट आया और पार्वती को धीरज देने लगा। माधो बाबा को पास बैठा चम्मच से बाबा के मुँह में चाय डाल रहा था। हरीश ने बाबा से जाने की आज्ञा ली और माधो को उनके पास थोड़ी देर ठहरने के लिए कहता गया।
हरीश के जाने के बाद पार्वती रसोईघर में भोजन तैयार करने के लिए चली गई और माधो बाबा के समीप बैठा उनके मुँह की ओर देखने लगा। बाबा भी चुपचाप उसकी ओर देखे जा रहे थे। थोड़ी देर बाद उन्होंने द्वार बंद करने का संकेत किया और उसे अपने पास आ बैठने को कहा।
‘पार्वती कहाँ है माधो?’ उखड़े स्वर में बाबा ने पूछा।
‘रसोईघर में शायद भोजन बना रही है।’
‘रामू से कह दिया होता।’
‘वह डॉक्टर साहब को छोड़ने गया है।’
‘बहुत जल्दबाज है, भला डॉक्टर को बुलाने की क्या आवश्यकता थी। हरीश भी क्या सोचता होगा?’
‘आप उनकी चिंता न करें, वह भी आपका बेटा है, बल्कि वह तो पार्वती से नाराज हो रहा था, कि पहले मुझे सूचना क्यों नहीं दी गई।’
‘बेटा बुढ़ापे का भी कोई इलाज है – अब तो दिन पूरे हो चुके।’
‘ऐसा न कहिए ठाकुर बाबा! पार्वती के होते आपको ऐसी बातें नहीं सोचनी चाहिए।’
पार्वती का नाम सुनते ही बाबा फिर गहरे विचार में खो गए। माधो ने रुकते-रुकते पूछा - ‘ठाकुर साहब एक बात पूछूं?’
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