ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
“अरे जाओ!” सुधा ने हँसते हुए कहा, “ऐसे हम तुम्हारे बनाने में आ जाएँ तो हो चुका।”
“अच्छा जाने दो। तुम्हारे पास कोई पोस्टकार्ड है? लाओ जरा इस कॉमरेड को एक चिठ्ठी तो लिख दें।” चन्दर बात बदलकर बोला। पता नहीं क्यों इस विषय की बात के चलने में उसे कैसा लगता था।
“कौन कामरेड?” सुधा ने पूछा, “तुम भी कम्युनिस्ट हो गये क्या?”
“नहीं, जी, वो बरेली का सोशलिस्ट लड़का कैलाश जिसने झगड़े में हम लोगों की जान बचायी थी। हमने तुम्हें बताया नहीं था सब किस्सा उस झगड़े का, जब हम और पापा बाहर गये थे!”
“हाँ-हाँ, बताया था। उसे जरूर खत लिख दो!” सुधा ने पोस्टकार्ड देते हुए कहा, “तुम्हें पता मालूम है?”
चन्दर जब पोस्टकार्ड लिख रहा था तो सुधा ने कहा, “सुनो, उसे लिख देना कि पापा की सुधा, पापा की जान बचाने के एवज में आपकी बहुत कृतज्ञ है और कभी अगर हो सके तो आप इलाहाबाद जरूर आएँ!...लिख दिया?”
“हाँ!” चन्दर ने पोस्टकार्ड जेब में रखते हुए कहा।
“चन्दर, हम भी सोशलिस्ट पार्टी के मेम्बर होंगे!” सुधा ने मचलते हुए कहा।
“चलो, अब तुम्हें नयी सनक सवार हुई। तुम क्या समझ रही हो सोशलिस्ट पार्टी को। राजनीतिक पार्टी है वह। यह मत करना कि सोशलिस्ट पार्टी में जाओ और लौटकर आओ तो पापा से कहो-अरे हम तो समझे पार्टी है, वहाँ चाय-पानी मिलेगा। वहाँ तो सब लोग लेक्चर देते हैं।”
“धत्, हम कोई बेवकूफ हैं क्या?” सुधा ने बिगडक़र कहा।
“नहीं, सो तो तुम बुद्धिसागर हो, लेकिन लड़कियों की राजनीतिक बुद्धि कुछ ऐसी ही होती है!” चन्दर बोला।
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