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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

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संवेदनशील प्रेमकथा।


“बुआजी ने कुछ कहा था।” चन्दर बोला।

“अरे तो उसके लिए क्या रोना! इतना समझाया तुझे कि उनकी तो आदत है। हँसकर टाल दिया कर। चल उठ! हँसती है कि गुदगुदाऊँ।” सुधा ने गुदगुदाते हुए कहा। बिनती ने उसका हाथ पकडक़र झटक दिया और फिर सिसकियाँ भरने लगी।

“नहीं मानेगी तू?” सुधा बोली, “अभी ठीक करती हूँ तुझे मैं। चन्दर, पकड़ो तो इसका हाथ।”

चन्दर चुप रहा।

“नहीं उठे। उठो, तुम इसका हाथ पकड़ लो तो हम अभी इसे हँसाते हैं।” सुधा ने चन्दर का हाथ पकडक़र बिनती की ओर बढ़ते हुए कहा। चन्दर ने अपना हाथ खींच लिया और बोला, “वह तो रो रही है और तुम बजाय समझाने के उसे परेशान कर रही हो।”

“अरे जानते हो, क्यों रो रही है? अभी इसके ससुर आये थे, वो बहुत मोटे थे तो ये सोच रही है कहीं 'वो' भी मोटे हों!” सुधा ने फिर उसकी गरदन गुदगुदाकर कहा।

बिनती हँस पड़ी। सुधा उछल पड़ी-”लो, ये तो हँस पड़ी, अब रोओगी?” अब फिर सुधा ने गुदगुदाना शुरू किया। बिनती पहले तो हँसी से लोट गयी फिर पल्ला सँभालते हुए बोली, “छिः, दीदी! वो बैठे हैं कि नहीं!” और उठकर बाहर जाने लगी।

“कहाँ चली?” सुधा ने पूछा।

“जा रही हूँ नहाने।” बिनती पल्लू से सिर ढँकते हुए चल दी।

“क्यों, मैंने तेरा बदन छू दिया इसलिए?” सुधा हँसकर बोली, “ऐ चन्दर, वो गेसू का छोटा भाई है न-हसरत, मैंने उसे छू लिया तो फौरन उसने जाकर अपना मुँह साबुन से धोया और अम्मीजान से बोला, “मेरा मुँह जूठा हो गया।” और आज हमने गेसू के अख्तर मियाँ को देखा। बड़े मजे के हैं। मैं तो गेसू से बात करती रही लेकिन बिनती और फूल ने बहुत छेड़ा उन्हें। बेचारे घबरा गये। फूल बहुत चुलबुली है और बड़ी नाजुक है। बड़ी बोलने वाली है और बिनती और फूल का खूब जोड़ मिला। दोनों खूब गाती हैं।”

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