ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
इक रिदायेतीरगी है और खाबेकायनात
डूबते जाते हैं तारे, भीगती जाती है रात!”
“वाह! कितना अच्छा है-अन्धकार की चादर है, जीवन का स्वप्न है, तारे डूबते जाते हैं, रात भीगती जाती है...गेसू, उर्दू की शायरी बहुत अच्छी है।”
“तो तू खुद उर्दू क्यों नहीं पढ़ लेती?” गेसू ने कहा।
“चाहती तो बहुत हूँ, पर निभ नहीं पाता!”
“किसी दिन शाम को आओ सुधा तो अम्मीजान से तुझे शेर सुनवाएँ। यह ले तेरी मोटर तो आ गयी।”
सुधा उठी, अपनी फाइल उठायी। गेसू ने अपनी ओढऩी झाड़ी और आगे चली। पास आकर उचककर उसने प्रिंसिपल का रूम देखा। वह खाली था। उसने दाई को खबर दी और मोटर पर बैठ गयी।
गेसू बाहर खड़ी थी। “चल तू भी न!”
“नहीं, मैं गाड़ी पर चली जाऊँगी।”
“अरे चलो, गाड़ी साढ़े चार बजे जाएगी। अभी घंटा-भर है। घर पर चाय पिएँगे, फिर मोटर पहुँचा देगी। जब तक पापा नहीं हैं, तब तक जितना चाहो कार घिसो!”
गेसू भी आ बैठी और कार चल दी।
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