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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

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संवेदनशील प्रेमकथा।


“नहीं चुप होगी!” चन्दर ने पागलों की तरह बिनती को ढकेल दिया, बिनती ने बाँस पकड़ लिया और चीख पड़ी।

चीख से चन्दर जैसे होश में आ गया। थोड़ी देर चुपचाप रहा फिर झुककर अंजलि में पानी लेकर मुँह धोया और बिनती के आँचल से पोंछकर बहुत मधुर स्वर में बोला, “बिनती, रोओ मत! मेरी समझ में नहीं आता कुछ भी! रोओ मत!”

चन्दर का गला भर आया और आँख में आँसू छलक आये-”चुप हो जाओ, रानी! मैं अब इस तरह कभी नहीं करूँगा-उठो! अब हम दोनों को निभाना है, बिनती!”

चन्दर ने तख्त पर छीना-झपटी में बिखरी हुई राख चुटकी में उठायी और बिनती की माँग में भरकर माँग चूम ली। उसके होठ राख में सन गये।

सितारे टूट चुके थे। तूफान खत्म हो चुका था।

नाव किनारे पर आकर लग गयी थी-मल्लाह को चुपचाप रुपये देकर बिनती का हाथ थामकर चन्दर ठोस धरती पर उतर पड़ा...मुर्दा चाँदनी में दोनों छायाएँ मिलती-जुलती हुई चल दीं।

गंगा की लहरों में बहता हुआ राख का साँप टूट-फूटकर बिखर चुका था और नदी फिर उसी तरह बहने लगी थी जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो।

।।समाप्त।।



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