लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता

गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

305 पाठक हैं

संवेदनशील प्रेमकथा।


हल्की चाँदनी मैले कफन की तरह लहरों की लाश पर पड़ी हुई थी। दिन-भर कमाकर मल्लाह थककर सो रहे थे। एक बूढ़ा बैठा चिलम पी रहा था। चुपचाप उसकी नाव पर चन्दर बैठ गया। बिनती उसकी बगल में बैठ गयी।

दोनों खामोश थे, सिर्फ पतवारों की छप-छप सुन पड़ती थी। मल्लाह ने तख्त के पास नाव बाँध दी और बोला, “नहा लें बाबू!” वह समझता था बाबू सिर्फ घूमने आये हैं।

“जाओ!”

वह दूर तख्तों की कतार के उस छोर पर जाकर खो गया। फिर दूर-दूर तक फैला संगम...और सन्नाटा...चन्दर सिर झुकाये बैठा रहा...बिनती सिर झुकाये बैठी रही। थोड़ी देर बाद बिनती सिसक पड़ी। चन्दर ने सिर उठाया और फौलादी हाथों से बिनती का कंधा झकझोरकर बोला, “बिनती, यदि रोयी तो यही फेंक देंगे उठाकर कम्बख्त, अभागी!”

बिनती चुप हो गयी।

चन्दर चुपचाप बैठा तख्त के नीचे से गुजरती हुई लहरों को देखता रहा। थोड़ी देर बाद उसने गठरी खोली...फिर रुक गया, शायद फेंकने का साहस नहीं हो रहा था...बिनती ने पीछे से आकर एक मुट्ठी राख उठा ली और अपने आँचल में बाँधने लगी। चन्दर ने चुपचाप उसकी ओर देखा, फिर झपटकर उसने बिनती का आँचल पकडक़र राख छीन ली और गुर्राता हुआ बोला, “बदतमीज कहीं की!...राख ले जाएगी-अभागी!” और झट से कपड़े सहित राख फेंक दी और आग्नेय दृष्टि से बिनती की ओर देखकर फिर सिर झुका लिया।

लहरों में राख एक जहरीले पनियाले साँप की तरह लहराती हुई चली जा रही थी।

बिनती चुपचाप सिसक रही थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai