ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
“क्या सोच रहे हो, चन्दर! उन्हें इसीलिए देखना चाहती हूँ कि मरने के पहले उन्हें क्षमा कर दूँ, उनसे क्षमा माँग लूँ!...चन्दर, तुम तकलीफ का अन्दाजा नहीं कर सकते।”
डॉक्टर शुक्ला आये। सुधा ने कहा, “पापा, आज तुम्हारी गोद में लेट लें।” उन्होंने सुधा का सिर गोद में रख लिया। “पापा, चन्दर को समझा दो, ये अब अपना ब्याह तो कर ले।...हाँ पापा, हमारी भागवत मँगवा दो...”
“शाम को मँगवा देंगे बेटी, अब एक बज रहा है...”
“देखा...” सुधा ने कहा, “बिनती, यहाँ आओ!”
बिनती आयी। सुधा ने उसका माथा चूमकर कहा, “रानी, जो कुछ तुझे आज तक समझाया वैसा ही करना, अच्छा! पापा तेरे जिम्मे हैं।”
बिनती रोकर बोली, “दीदी, ऐसी बातें क्यों करती हो...”
सुधा कुछ न बोली, गोद से हटाकर सिर तकिये पर रख लिया।
“जाओ पापा, अब सो रहो तुम।”
“सो लूँगा, बेटी...”
“जाओ। नहीं फिर हम अच्छे नहीं होंगे! जाओ...”
सर्जन का आदेश था कि मरीज के मन के विरुद्ध कुछ नहीं होना चाहिए-डॉक्टर शुक्ला चुपचाप उठे और बाहर बिछे पलँग पर लेट रहे।
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