ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
“उफ! मरीज के पास इतने आदमी? तभी डेलीरियम होता है।” सहसा डॉक्टर ने प्रवेश किया। कोई दूसरा डॉक्टर था, अँग्रेज था। बिनती और चन्दर बाहर चले आये। बिनती बोली, “ये सिविल सर्जन हैं।” उसने खून मँगवाया, देखा, फिर डॉक्टर शुक्ला को भी हटा दिया। सिर्फ नर्स रह गयी। थोड़ी देर बाद वह निकला तो उसका चेहरा स्याह था। “क्या यह प्रैग्नेन्सी पहली मर्तबा थी?”
“जी हाँ?”
डॉक्टर ने सिर हिलाया और कहा, “अब मामला हाथ से बाहर है। इंजेक्शन लगेंगे। अस्पताल ले चलिए।”
“डॉक्टर शुक्ला, मवाद आ रहा है, कल तक सारे बदन में फैल जाएगा, किस बेवकूफ डॉक्टर ने देखा था...”
चन्दर ने फोन किया। ऐम्बुलेन्स कार आ गयी। सुधा को उठाया गया...
दिन बड़ी ही चिन्ता में बीता। तीन-तीन घंटे पर इंजेक्शन लग रहे थे। दोपहर को दो बजे इंजेक्शन खत्म कर डॉक्टर ने एक गहरी साँस ली और बोला, “कुछ उम्मीद है-अगर बारह घंटे तक हार्ट ठीक रहा तो मैं आपकी लड़की आपको वापस दूँगा।”
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