लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता

गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

305 पाठक हैं

संवेदनशील प्रेमकथा।


डॉक्टर शुक्ला ने नर्स की ओर देखा। नर्स बोली-

सुधा ने फिर करवट बदली और नर्स को देखकर बोली, “कौन गेसू...आओ बैठो। चन्दर नहा रहा है। अभी बुलाती हूँ। अरे चन्दर...” और फिर हाँफने लगी, आँखें बन्द कर लीं और रोकर बोली, “पापा, तुम कहाँ चले गये?”

नर्स ने चन्दर और बिनती को बुलाया। बिनती पास जाकर खड़ी हो गयी-आँसू पोंछकर बोली, “दीदी, हम आ गये।” और सुधा की बाँह पर हाथ रख दिया। सुधा ने आँखें नहीं खोलीं, बिनती के हाथ पर हाथ रखकर बोली, “बिनती, पापा कहाँ गये हैं?”

“खड़े तो हैं मामाजी!”

“झूठ मत बोल कम्बख्त...अच्छा ले, शरबत तैयार है, जा चन्दर स्टडीरूम में पढ़ रहा है बुला ला, जा!”

बिनती फफककर रो पड़ी।

“रोती क्यों है?” सुधा ने कराहकर कहा, “मैं जाऊँगी तो चन्दर को तेरे पास छोड़ जाऊँगी। जा चन्दर को बुला ला, नहीं बर्फ घुल जाएगी-शरबत छान लिया है?”

चन्दर आगे आया। रुँधे गले से आँसू पीते हुए बोला, “सुधा, आँखें खोलो। हम आ गये, सुधी!”

डॉक्टर साहब कुर्सी पर पड़े सिसक रहे थे...सुधा ने आँखें खोलीं और चन्दर को देखते ही फिर बहुत जोर से चीखी...”तुम...तुम ऑस्ट्रेलिया से लौट आये? झूठे! तुम चन्दर हो? क्या मैं तुम्हें पहचानती नहीं? अब क्या चाहिए? इतना कहा, तुमसे हाथ जोड़ा, मेरी क्या हालत है? लेकिन तुम्हें क्या? जाओ यहाँ से वर्ना मैं अभी सिर पटक दूँगी...” और सुधा ने सिर पटक दिया-”नहीं गये?” नर्स ने इशारा किया-चन्दर कमरे के बाहर आया और कुर्सी पर सिर झुकाकर बैठ गया। सुधा ने आँखें खोलीं और फटी-फटी आँखों से चारों ओर देखने लगी। फिर नर्स से बोली-

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai