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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

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संवेदनशील प्रेमकथा।


“कुछ समझ में नहीं आता, उस दिन सुबह जीजाजी गये। दोपहर में पापा ऑफिस गये थे। मैं सो रही थी, सहसा जीजी चीखी। मैं जागी तो देखा दीदी बेहोश पड़ी हैं। मैंने जल्दी से फोन किया। पापा आये, डॉक्टर आये। उसके बाद से पापा और नर्स के अलावा किसी को नहीं जाने देते दीदी के पास। मुझे भी नहीं।”

और बिनती रो पड़ी। चन्दर कुछ नहीं बोला। चुपचाप पत्थर की मूर्ति-सा कुर्सी पर बैठा रहा। खिडक़ी से बाहर की ओर देख रहा था।

थोड़ी देर में डॉक्टर साहब वापस आये। उनके साथ तीन डॉक्टर थे और एक नर्स। डॉक्टरों ने करीब दस मिनट देखा, फिर अलग कमरे में जाकर सलाह करने लगे। जब लौटे तो डॉक्टर साहब ने बहुत विह्वïल होकर कहा, “क्या उम्मीद है?”

“घबराइए मत, घबराइए मत-अब तो जब तक अन्दरूनी सब साफ नहीं हो जाएगा तब तक खून जाएगा। नब्ज के लिए और होश के लिए एक इंजेक्शन देते हैं-अभी।”

इंजेक्शन देने के बाद डॉक्टर चले गये। पापा वहीं जाकर बैठ गये। बिनती और चन्दर चुपचाप बैठे रहे। करीब पाँच मिनट के बाद सुधा ने भयंकर स्वर में कराहना शुरू किया। उन कराहों में जैसे उनका कलेजा उलटा आता हो। डॉक्टर साहब उठकर यहाँ चले आये और चन्दर से बोले, “वेहीमेंट ब्लीडिंग...” और कुर्सी पर सिर झुकाकर बैठ गये। बगल के कमरे से सुधा की दर्दनाक कराहें उठती थीं और सन्नाटे में छटपटाने लगती थीं। अगर आपने किसी जिन्दा मुर्गी के पंख और पूँछ नोचे जाते हुए देखा हो तभी आप उसका अनुमान कर सकते हैं; उस भयानकता का, जो उन कराहों में थी। थोड़ी देर बाद कराहें बन्द हो गयीं, फिर सहसा इस बुरी तरह से सुधा चीखी जैसे गाय डकार रही हो। पापा उठकर भागे-वह भयंकर चीख उठी और सन्नाटे में मँडराने लगी-बिनती रो रही थी-चन्दर का चेहरा पीला पड़ गया था और पसीने से तर हो गया था वह।

पापा लौटकर आये, “हम लोग देख सकते हैं?” चन्दर ने पूछा।

“अभी नहीं-अब ब्लीडिंग खत्म है।...नर्स अभी कपड़े बदल दे तो चलेंगे।”

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