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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

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संवेदनशील प्रेमकथा।


सुधा ने बादलों से अपनी निगाह नहीं हटायी, बस एक करुण सपनीली मुसकराहट बिखेरकर रह गयी।

क्या देख रही है, सुधा?” गेसू ने पूछा।

“बादलों को देख रही हूँ।” सुधा ने बेहोश आवाज में जवाब दिया। गेसू उठी और सुधा की छाती पर सिर रखकर बोली-

कैफ बरदोश, बादलों को न देख,

बेखबर, तू न कुचल जाय कहीं!

और सुधा के गाल में जोर की चुटकी काट ली। “हाय रे!” सुधा ने चीखकर कहा और उठ बैठी, “वाह वाह! कितना अच्छा शेर है! किसका है?”

“पता नहीं किसका है।” गेसू बोली, “लेकिन बहुत सच है सुधी, आस्माँ के बादलों के दामन में अपने ख्वाब टाँक लेना और उनके सहारे जिंदगी बसर करने का खयाल है तो बड़ा नाजुक, मगर रानी बड़ा खतरनाक भी है। आदमी बड़ी ठोकरें खाता है। इससे तो अच्छा है कि आदमी को नाजुकखयाली से साबिका ही न पड़े। खाते-पीते, हँसते-बोलते आदमी की जिंदगी कट जाए।”

सुधा ने अपना आँचल ठीक किया, और लटों में से घास के तिनके निकालते हुए कहा, “गेसू, अगर हम लोगों को भी शादी-ब्याह के झंझट में न फँसना पड़े और इसी तरह दिन कटते जाएँ तो कितना मजा आए। हँसते-बोलते, पढ़ते-लिखते, घास में लेटकर बादलों से प्यार करते हुए कितना अच्छा लगता है, लेकिन हम लड़कियों की जिंदगी भी क्या! मैं तो सोचती हूँ गेसू; कभी ब्याह ही न करूँ। हमारे पापा का ध्यान कौन रखेगा?”

गेसू थोड़ी देर तक सुधा की आँखों में आँखें डालकर शरारत-भरी निगाहों से देखती रही और मुसकराकर बोली, “अरे, अब ऐसी भोली नहीं हो रानी तुम! ये शबाब, ये उठान और ब्याह नहीं करेंगी, जोगन बनेंगी।”

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