ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
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उसके बाद चन्दर बाजार गया और कैलाश के लिए तथा सुधा के लिए कुछ कपड़े खरीद लाया। इसके साथ ही कुछ नमकीन जो सुधा को पसन्द था, पेठा, एक तरबूज, एक बोतल गुलाब का शरबत, एक सुन्दर-सा पेन और जाने क्या-क्या खरीद लाया। सुधा ने देखकर कहा, “पापा नहीं हैं, फिर भी लगता है मैं मायके आयी हूँ!” लेकिन वह कुछ खा-पी नहीं सकी।
चन्दर खाना खाकर लॉन में बैठ गया, वहीं उसने अपनी चारपाई डलवा ली। सुधा के बिस्तर छत पर लगे थे। उसके पास महराजिन सोनेवाली थीं। सुधा एक तश्तरी में तरबूज काटकर ले आयी और कुर्सी डालकर चन्दर भी चारपाई के पास बैठ गया। चन्दर तरबूज खाता रहा...थोड़ी देर बाद सुधा बोली-
“चन्दर, बिनती के बारे में तुम्हारी क्या राय है?”
“राय? राय क्या होती? बहुत अच्छी लड़की है! तुमसे तो अच्छी ही है!” चन्दर ने छेड़ा।
“अरे, मुझसे अच्छी तो दुनिया है, लेकिन एक बात पूछें? बहुत गम्भीर बात है!”
“क्या?”
“तुम बिनती से ब्याह कर लो।”
“बिनती से? कुछ दिमाग तो नहीं खराब हो गया है?”
“नहीं! इस बारे में पहले-पहले 'ये' बोले कि चन्दर से बिनती का ब्याह क्यों नहीं करती, तो मैंने चुपचाप पापा से पूछा। पापा बिल्कुल राजी हैं, लेकिन बोले मुझसे कि तुम्हीं कहो चन्दर से। कर लो; चन्दर! बुआजी अब दखल नहीं देंगी।”
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