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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

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संवेदनशील प्रेमकथा।


“दुर्बलता-चन्दर! तुम्हें ध्यान होगा, एक दिन हम लोगों ने निश्चय किया था कि हमारे प्यार की कसौटी यह रहेगी चन्दर, दूर रहकर भी हम लोग ऊँचे उठेंगे, पवित्र रहेंगे। दूर हो जाने के बाद चन्दर, तुम्हारा प्यार तो मुझमें एक दृढ़ आत्मा और विश्वास भरता रहा, उसी के सहारे मैं अपने जीवन के तूफानों को पार कर ले गयी; लेकिन पता नहीं मेरे प्यार में कौन-सी दुर्बलता रही कि तुम उसे ग्रहण नहीं कर पाये...मैं तुमसे कुछ नहीं कहती। मगर अपने मन में कितनी कुंठित हूँ कि कह नहीं सकती। पता नहीं दूसरा जन्म होता है या नहीं; लेकिन इस जन्म में तुम्हें पाकर तुम्हारे चरणों पर अपने को न चढ़ा पायी। तुम्हें अपने मन की पूजा में यकीन न दिला पायी, इससे बढ़कर और दुर्भाग्य क्या होगा? मैं अपने व्यक्तित्व को कितना गर्हित, कितना छिछला समझने लगी हूँ, चन्दर!”

चन्दर ने नाश्ता खिसका दिया। अपनी आँख में झलकते हुए आँसू को छिपाते हुए चुपचाप बैठ गया।

“नाश्ता कर लो, चन्दर! इस तरह तुम्हें अपने पास बिठाकर खिलाने का सुख अब कहाँ नसीब होगा! लो।” और सुधा ने अपने हाथ से उसे एक नमकीन सेव खिला दिया। चन्दर के भरे आँसू सुधा के हाथों पर चू पड़े।

“छिः, यह क्या, चन्दर!”

“कुछ नहीं...” चन्दर ने आँसू पोंछ डाले।

इतने में महराजिन आयी और सुधा से बोली, “बिटिया रानी! लेव ई नानखटाई हम कल्है से बनाय के रख दिया रहा कि तोके खिलाइबे!”

“अच्छा! हम भी महराजिन, इतने दिन से तुम्हारे हाथ का खाने के लिए तरस गये, तुम चलो हमारे साथ!”

“हियाँ चन्दर भइया के कौन देखी? अब बिटिया इनहूँ के ब्याह कर देव, तो हम चली तोहरे साथ!”

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