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ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता

गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

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संवेदनशील प्रेमकथा।


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तैयार होकर चन्दर जब स्टेशन पहुँचा तो वह जैसे मोहाविष्ट-सा था। जैसे वह किसी जादू या टोना पढ़ा-हुआ-सा घूम रहा था और वह जादू था सुधा के प्यार का पुनरावर्तन।

गाड़ी घंटा-भर लेट थी। चन्दर को एक पल काटना मुश्किल हो रहा था। अन्त में सिगनल डाउन हुआ। कुलियों में हलचल मची और चन्दर पटरी पर झुककर देखने लगा। सुबह हो गयी थी और इंजन दूर पर एक काले दाग-सा दिखाई पड़ रहा था, धीरे-धीरे वह दाग बड़ा होने लगा और लम्बी-सी हरी पूँछ की तरह लहराती हुई ट्रेन आती दिखाई पड़ी। चन्दर के मन में आया, वह पागल की तरह दौड़कर वहाँ पहुँच जाए। जिस दिन एक घोर अविश्वासी में विश्वास जाग जाता है, उस दिन वह पागल-सा हो उठता है। उसे लग रहा था जैसे इस गाड़ी में सभी डिब्बे खाली हैं। सिर्फ एक डिब्बे में अकेली सुधा होगी। जो आते ही चन्दर को अपनी प्यार-भरी निगाहों में समेट लेगी।

गाड़ी के प्लेटफार्म पर आते ही हलचल बढ़ गयी। कुलियों की दौड़धूप, मुसाफिरों की हड़बड़ी, सामान की उठा-धरी से प्लेटफॉर्म भर गया। चन्दर पागलों-सा इस सब भीड़ को चीरकर डिब्बे देखने लगा। एक दफे पूरी गाड़ी का चक्कर लगा गया। कहीं भी सुधा नहीं दिखाई दी। जैसे आँसू से उसका गला रुँधने लगा। क्या आये नहीं ये लोग! किस्मत कितना व्यंग्य करती है उससे! आज जब वह किसी के चरणों पर अपनी आत्मा उत्सर्ग कर फिर पवित्र होना चाहता था तो सुधा ही नहीं आयी। उसने एक चक्कर और लगाया और निराश होकर लौट पड़ा। सहसा सेकेंड क्लास के एक छोटे-से डिब्बे में से कैलाश ने झाँककर कहा, “कपूर!”

चन्दर मुड़ा, देखा कि कैलाश झाँक रहा है। एक कुली सामान उतारकर खड़ा है। सुधा नहीं है।

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