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ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता

गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

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संवेदनशील प्रेमकथा।


जब वह जागा तो रात अपने मखमली पंख पसारे नींद में डूबी हुई दुनिया पर शान्ति का आशीर्वाद बिखेर रही थी। ठंडे झोंके लहरा रहे थे और उन झोंकों पर पवित्रता छायी हुई थी। यह पछुआ के झोंके थे। ब्राह्म मुहूर्त में प्राचीन आर्यों ने जो रहस्य पाया था, वह धीरे-धीरे चन्दर की आँखों के सामने खुलने-सा लगा। उसे लगा जैसे यह उसके व्यक्तित्व की नयी सुबह है। एक बड़ा शान्त संगीत उसकी पलकों पर ओस की तरह थिरकने लगा।

क्षितिज के पास एक बड़ा-सा सितारा जगमगा रहा था! चन्दर को लगा जैसे यह उसके प्यार का सितारा है जो जाने किस अज्ञात पाताल में डूब गया था और आज से वह फिर उग गया है। उसने एक अन्धविश्वासी भोले बच्चे की तरह उस सितारे को हाथ जोडक़र कहा, “मेरी कंचन जैसी सुधा रानी के प्यार, तुम कहाँ खो गये थे? तुम मेरे सामने नहीं रहे, मैं जाने किन तूफानों में उलझ गया था। मेरी आत्मा में सारी गुरुता सुधा के प्यार की थी। उसे मैंने खो दिया। उसके बाद मेरी आत्मा पीले पत्ते की तरह तूफान में उड़कर जाने किस कीचड़ में फँस गयी थी। तुम मेरी सुधा के प्यार हो न! मैंने तुम्हें सुधा की भोली आँखों में जगमगाते हुए देखा था। वेदमंत्रों-जैसे इस पवित्र सुबह में आज फिर मेरे पाप में लिप्त तन को अमृत से धोने आये हो। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि आज सुधा के चरणों पर अपने जीवन के सारे गुनाहों को चढ़ाकर हमेशा के लिए क्षमा माँग लूँगा। लेकिन मेरी साँसों की साँस सुधा! मुझे क्षमा कर दोगी न?” और विचित्र-से भावावेश और पुलक से उसकी आँख में आँसू आ गये। उसे याद आया कि एक दिन सुधा ने उसकी हथेलियों को होठों से लगाकर कहा था-जाओ, आज तुम सुधा के स्पर्श से पवित्र हो...काश कि आज भी सुधा अपने मिसरी-जैसे होठों से चन्दर की आत्मा को चूमकर कहे-जाओ चन्दर, अभी तक जिंदगी के तूफान ने तुम्हारी आत्मा को बीमार, अपवित्र कर दिया था...आज से तुम वही चन्दर हो। अपनी सुधा के चन्दर। हरिणी-जैसी भोली-भाली सुधा के महान पवित्र चन्दर...

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