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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

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संवेदनशील प्रेमकथा।


38


चन्दर सिर से पैर तक ग्लानि से कुंठित हो उठा। सचमुच वह कितना अभागा है! वह किसी को भी सन्तुष्ट नहीं रख पाया। उसके जीवन में सुधा भी आयी और पम्मी भी, एक को उसके पुण्य ने उससे छीन लिया, दूसरी को उसका गुनाह उससे छीने लिये जा रहा है। जाने उसके ग्रहों का मालिक कितना क्रूर खिलाड़ी है कि हर कदम पर उसकी राह उलट देता है। नहीं, वह पम्मी को नहीं खो सकता-उसने पम्मी का कॉलर पकड़ लिया, “पम्मी, तुम्हें हमारी कसम है-बुरा मत मानो! मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा।”

पम्मी हँसी-बड़ी ही करुण लेकिन सशक्त हँसी। अपने कॉलर को धीमे-से छुड़ाकर चन्दर की अँगुलियों को कपोलों से दबा दिया और फिर वक्ष के पास से एक लिफाफा निकालकर चन्दर के हाथों में दे दिया और कार स्टार्ट कर दी...पीछे मुडक़र नहीं देखा...नहीं देखा। कार कड़ुवे धुएँ का बादल चन्दर की ओर उड़ाकर आगे चल दी।

जब कार ओझल हो गयी, तब चन्दर को होश आया कि उसके हाथ में एक लिफाफा भी है। उसने सोचा, फौरन कार लेकर जाये और पम्मी को रोक ले। फिर सोचा, पहले पढ़ तो ले, यह है क्या चीज? उसने लिफाफा खोला और पढऩे लगा-

“कपूर,
एक दिन तुम्हारी आवाज और बर्टी की चीख सुनकर अपूर्ण वेश में ही अपने शृंगार-गृह से भाग आयी थी और तुम्हें फूलों के बीच में पाया था, आज तुम्हारी आवाज मेरे लिए मूक हो गयी है और असन्तोष और उदासी के काँटों के बीच मैं तुम्हें छोडक़र जा रही हूँ।


जा रही हूँ इसलिए कि अब तुम्हें मेरी जरूरत नहीं रही। झूठ क्यों बोलूँ, अब क्या, कभी भी तुम्हें मेरी जरूरत नहीं रही थी, लेकिन मैंने हमेशा तुम्हारा दुरुपयोग किया। झूठ क्यों बोलें, तुम मेरे पति से भी अधिक समीप रहे हो। तुमसे कुछ छिपाऊँगी नहीं। मैं तुमसे मिली थी, जब मैं एकाकी थी, उदास थी, लगता था कि उस समय तुम मेरी सुनसान दुनिया में रोशनी के देवदूत की तरह आये थे। तुम उस समय बहुत भोले, बहुत सुकुमार, बहुत ही पवित्र थे। मेरे मन में उस दिन तुम्हारे लिए जाने कितना प्यार उमड़ आया! मैं पागल हो उठी। मैंने तुम्हें उस दिन सेलामी की कहानी सुनायी थी, सिनेमा घर में, उसी अभागिन सेलामी की तरह मैं भी पैगम्बर को चूमने के लिए व्याकुल हो उठी।

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