लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता

गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

305 पाठक हैं

संवेदनशील प्रेमकथा।


लेकिन वह नशा टूट चुका था, वह साँस धीमी पड़ गयी थी...अपनी हर कोशिश के बावजूद वह पम्मी को उदास होने से बचा न पाता था।

एक दिन सुबह जब वह कॉलेज जा रहा था कि पम्मी की कार आयी। पम्मी बहुत ही उदास थी। चन्दर ने आते ही उसका स्वागत किया। उसके कानों में एक नीले पत्थर का बुन्दा था, जिसकी हल्की छाँह गालों पर पड़ रही थी। चन्दर ने झुककर वह नीली छाँह चूम ली।

पम्मी कुछ नहीं बोली। वह बैठ गयी और फिर चन्दर से बोली, “मैं लखनऊ जा रही हूँ, कपूर!”

“कब? आजï?”

“हाँ, अभी कार से।”

“क्यों?”

“यों ही, मन ऊब गया! पता नहीं, कौन-सी छाँह मुझ पर छा गयी है। मैं शायद लखनऊ से मसूरी चली जाऊँ।”

“मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा, पहले तो तुमने बताया नहीं!”

“तुम्हीं ने कहाँ पहले बताया था!”

“क्या?”

“कुछ भी नहीं! अच्छा, चल रही हूँ।”

“सुनो तो!”

“नहीं, अब रोक नहीं सकते तुम...बहुत दूर जाना है चन्दर...” वह चल दी। फिर वह लौटी और जैसे युगों-युगों की प्यास बुझा रही हो, चन्दर के गले में झूल गयी और कस लिया चन्दर को...पाँच मिनट बाद सहसा वह अलग हो गयी और फिर बिना कुछ बोले अपनी कार में बैठ गयी। “पम्मी...तुम्हें हुआ क्या यह?”

“कुछ नहीं, कपूर।” पम्मी कार स्टार्ट करते हुए बोली, “मैं तुमसे जितनी ही दूर रहूँ उतना ही अच्छा है, मेरे लिए भी, तुम्हारे लिए भी! तुम्हारे इन दिनों के व्यवहार ने मुझे बहुत कुछ सिखा दिया है?”

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai