लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता

गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

305 पाठक हैं

संवेदनशील प्रेमकथा।


“जी हाँ, मैं देहरादून में थी। अम्मीजान वगैरह सभी वहीं थीं। अभी हाल में वहाँ कुछ पनाहगीर पहुँचे...”

“पनाहगीर?”

“जी, पंजाब के सिख वगैरह। कुछ झगड़ा हो गया तो हम लोग चले आये। अब हम लोग यहीं हैं।”

“अख्तर मियाँ कहाँ हैं?”

“मिरजापुर में पीतल का रोजगार कर रहे हैं!”

“और उनकी बीवी देहरादून में थी। यह सजा क्यों दी आपने उन्हें?”

“सजा की कोई बात नहीं।” गेसू का स्वर घुटता हुआ-सा मालूम दे रहा था। “उनकी बीवी उनके साथ है।”

“क्या मतलब? आप तो अजब-सी बातें कर रही हैं। अगर मैं भूल नहीं करता तो आपकी शादी...”

“जी हाँ!” बड़ी ही उदास हँसी हँसकर गेसू बोली, “आपसे चन्दर भाई, मैं क्या छिपाऊँगी, जैसे सुधा वैसे आप! मेरी शादी उनसे नहीं हुई!”

“अरे! गुस्ताखी माफ कीजिएगा, सुधा तो मुझसे कह रही थी कि अख्तर...”

“मुझसे मुहब्बत करते हैं!” गेसू बात काटकर बोली और बड़ी गम्भीर हो गयी और अपनी चुन्नी के छोर में टँके हुए सितारे को तोड़ती हुई बोली, “मैं सचमुच नहीं समझ पायी कि उनके मन में क्या था। उनके घरवालों ने मेरे बजाय फूल को ज्यादा पसन्द किया। उन्होंने फूल से ही शादी कर ली। अब अच्छी तरह निभ रही है दोनों की। फूल तो इतने अरसे में एक बार भी हम लोगों से मिलने नहीं आयी!”

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai