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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

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संवेदनशील प्रेमकथा।


“आखिर बात क्या हुई, महराजिन?” चन्दर ने पूछा।

महराजिन ने जो बताया उससे पता लगा कि लड़के वाले बहुत ही संकीर्णमना और स्वार्थी थे। पहले मालूम हुआ कि लड़काउन्होंने ग्रेजुएट बताया था। वह था इंटर फेल। फिर दरवाजे पर झगड़ा किया उन्होंने। डॉक्टर साहब बहुत बिगड़ गये, अन्त में मड़वे में लोगों ने देखा कि लड़के के बायें हाथ की अँगुलियाँ गायब हैं। डॉक्टर साहब इस बात पर बिगड़े और उन्होंने मड़वे से बिनती को उठवा दिया। फिर बहुत लड़ाई हुई। लाठी तक चलने की नौबत आ गयी। जैसे-तैसे झगड़ा निपटा। तीन भाँवरों के बाद ब्याह टूट गया।

“अब बताओ, भइया!” सहसा बुआ आँसू पोंछकर गरज उठीं-”ई इन्हें का हुइ गवा रहा, इनकी मति मारी गयी। गुस्से में आय के बिनती को उठवाय लिहिन। अब हम एत्ती बड़ी बिटिया लै के कहाँ जाईं? अब हमरी बिरादरी में कौन पूछी एका? एत्ता पढ़-लिख के इन्हें का सूझा? अरे लड़की वाले हमेशा दब के चलै चाहीं।”

“अरे तो क्या आँख बन्द कर लेते? लँगड़े-लूले लड़के से कैसे ब्याह कर देते, बुआ! तुम भी गजब करती हो!” चन्दर बोला।

“भइया, जेके भाग में लँगड़ा-लूला बदा होई ओका ओही मिली। लड़कियन को निबाह करै चाही कि सकल देखै चाही। अबहिन ब्याह के बाद कौनों के हाथ-गोड़ टूट जाये तो औरत अपने आदमी को छोड़ के गली-गली की हाँड़ी चाटै? हम रहे तो जब बिनती तीन बरस की हुई गयी, तब उनकी सकल उजेले में देखा रहा। जैसा भाग में रहा तैसा होता!”

चन्दर ने विचित्र हृदय-हीन तर्क को सुना और आश्चर्य से बुआ की ओर देखने लगा।

....बुआजी बकती जा रही थीं।

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