ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
“आज इतवार है, प्रोफेसर कपूर?” पम्मी चन्दर को उठाकर बोली, “मैं तुम्हें उदास नहीं होने दूँगी, मेरे मीठे सपने! तुमने भी मुझे इस उदासी के इन्द्रजाल से छुड़ाया था, याद है न?” और चन्दर के माथे पर अपने गरम मुलायम होठ रख दिये।
माथे पर पम्मी के होठों की गुलाबी आग चन्दर की नसों को गुदगुदा गयी। वह क्षण-भर के लिए अपने को भूल गया...पम्मी के रेशमी फ्रॉक के गुदगुदाते हुए स्पर्श, उसके वक्ष की अलभ्य गरमाई और उसके स्पर्श के जादू में खो गया। उसके अंग-अंग में सुबह की शबनम ढलकने लगी। पम्मी उसके बालों को अँगुलियों से सुलझाती रही। फिर कपूर के गाल थपथपाकर बोली, “चलो!” कपूर जाकर बैठ गया। “तुम ड्राइव करो।” पम्मी बोली। चन्दर ड्राइव करने लगा और पम्मी कभी उसके कॉलर, कभी उसके बाल, कभी उसके होठों से खेलती रही।
सात चाँद की रानी ने आखिर अपनी निगाहों के जादू से सन्नाटे के प्रेत को जीत लिया। स्पर्शो के सुकुमार रेशमी तारों ने नगर की आग को शबनम से सींच दिया। ऊबड़-खाबड़ खंडहर को अंगों के गुलाब की पाँखुरियों से ढँक दिया और पीड़ा के अँधियारे को सीपिया पलकों से झरने वाली दूधिया चाँदनी से धो दिया। एक संगीत की लय थी जिसमें स्वर्गभ्रष्ट देवता खो गया, संगीत की लय थी या उद्दाम यौवन का भरा हुआ ज्वार था जो चन्दर को एक मासूम फूल की तरह बहा ले गया...जहाँ पूजा-दीप बुझ गया था, वहाँ तरुणाई की साँस की इन्द्रधनुषी समाँ झिलमिला उठी थी, जहाँ फूल मुरझाकर धूल में मिल गये थे वहाँ पुखराजी स्पर्शों के सुकुमार हरसिंगार झर पड़े....आकाश के चाँद के लिए जिंदगी के आँगन में मचलता हुआ कन्हैया, थाली के प्रतिबिम्ब में ही भूल गया...
चन्दर की शामें पम्मी के अदम्य रूप की छाँह में मुस्करा उठीं। ठीक चार बजे पम्मी आती, कार पर चन्दर को ले जाती और चन्दर आठ बजे लौटता। प्यार के बिना कितने महीने कट गये, पम्मी के बिना एक शाम नहीं बीत पाती, लेकिन अब भी चन्दर ने अपने को इतना दूर रखा था कि कभी पम्मी के होठों के गुलाबों ने चन्दर के होठों के मूँगे से बातें भी नहीं की थीं।
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