ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
“मेरी? अरे, हम बे-पढ़े-लिखे आदमी, हम क्या आपसे बात करेंगे! लेकिन एक बात है। ज्यादा पढऩा-लिखना अच्छा नहीं होता।”
“क्यों?” चन्दर ने पूछा।
“पढ़ने-लिखने से ही आप और दीदी जाने क्या-क्या सोचते हैं! हमने देहात में देखा है कि वहाँ लड़कियाँ समझती हैं कि उन्हें क्या करना है। इसलिए कभी इन सब बातों पर अपना मन नहीं बिगाड़तीं। बल्कि मैंने तो देखा है सभी शादी के बाद मोटी होकर आती हैं। और दीदी अब छोटी-सी नहीं कि ऐसी उनकी तबीयत खराब हो जाय। यह सब मन में घुटने का नतीजा है। जब यह होना ही है तो क्यों दीदी दु:खी होती हैं? उन्हें तो और मोटी होना चाहिए।” बिनती बोली।
इस समस्या का इतना सरल समाधान सुनकर चन्दर को हँसी आ गयी।
“अब तुम ससुराल जा रही हो। मोटी होकर आना!”
“धत्, आप तो मजाक करने लगे!”
“लेकिन बिनती, तुम इस मामले में बड़ी विद्वान मालूम देती हो। अभी तक यह विद्वत्ता कहाँ छिपा रखी थी?”
“नहीं, आप मजाक न बनाइए तो मैं सच बताऊँ कि देहाती लड़कियाँ शहर की लड़कियों से ज्यादा होशियार होती हैं इन सब मामलों में।”
“सच?” चन्दर ने पूछा। वह गाँव की जिंदगी को बेहद निरीह समझता था।
“हाँ और क्या? वहाँ इतना दुराव, इतना गोपन नहीं है। सभी कुछ उनके जीवन का उन्मुक्त है। और ब्याह के पहले ही वहाँ लड़कियाँ सबकुछ...”
“अरे नहीं!” चन्दर ने बेहद ताज्जुब से कहा।
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