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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

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संवेदनशील प्रेमकथा।


सुधा तिलमिला उठी, “तो यह बात है तुम्हारे मन में! मैं पहले से समझती थी। लेकिन तुम्हीं ने तो कहा था, चन्दर! अब तुम्हीं ऐसे कह रहे हो? शरम नहीं आती तुम्हें।” और सुधा ने हाथ से ब्याह वाले चूड़े उतारकर छत पर फेंक दिये, बिछिया उतारने लगी-और पागलों की तरह फटी आवाज में बोली, “जो तुमने कहा, मैंने किया, अब जो कहोगे वह करूँगी। यही चाहते हो न!” और अन्त में उसने अपनी बिछिया उतारकर छत पर फेंक दी।

चन्दर काँप गया। उसने इस दृश्य की कल्पना भी नहीं की थी। “बिनती! बिनती!” उसने घबराकर पुकारा और सुधा से बोला, “अरे, यह क्या कर रही हो! कोई देखेगा तो क्या सोचेगा! पहनो जल्दी से।”

“मुझे किसी की परवा नहीं। तुम्हारा तो जी ठंडा पड़ जाएगा!”

चन्दर उठा। उसने जबरदस्ती सुधा के हाथ पकड़ लिये। बिनती आ गयी थी।

“लो, इन्हें चूड़े तो पहना दो!” बिनती ने चुपचाप चूड़े और बिछिया पहना दी। सुधा चुपचाप उठी और नीचे चली गयी।

चन्दर अपनी खाट पर सिर झुकाये लज्जित-सा बैठा था।

“लीजिए, खाना खा लीजिए।” बिनती बोली।

“मैं नहीं खाऊँगा।” चन्दर ने रुँधे गले से कहा।

“खाइए, वरना अच्छी बात नहीं होगी। आप दोनों मिलकर मुझे मार डालिए बस किस्सा खत्म हो जाए। न आप सीधे मुँह से बोलते हैं, न दीदी। पता नहीं आप लोगों को क्या हो गया है?”

चन्दर कुछ नहीं बोला।

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