ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
झटके से बाथरूम का दरवाजा खुला बेदिङ्-गाउन पहने हुए एक लड़की दौड़ती हुई आयी और चन्दर को देखकर रुक गयी।
“क्या है?” उसने डाँटकर पूछा।
“कुछ नहीं, शायद पागल मालूम देता है!”
“जबान सँभालकर बोलो, वह मेरा भाई है!”
“ओह! कोई भी हो। मैं मिस डिक्रूज से मिलने आया था। मैंने आवाज दी तो कोई नहीं बोला। मैं बाग में घूमने लगा। इतने में इसने मेरी गरदन पकड़ ली। यह बीमार और कमजोर है वरना अभी गरदन दबा देता।”
गोरा उस लड़की के आते ही फिर तनकर खड़ा हो गया और दाँत पीसकर बोला, “अरे मैं तुम्हारे दाँत तोड़ दूँगा। बदमाश कहीं का, चुपके-चुपके आया और गुलाब तोडऩे लगा। मैं चमेली के झाड़ के पीछे छिपा देख रहा था।”
“अभी मैं पुलिस बुलाती हूँ, तुम देखते रहो बर्टी इसे। मैं फोन करती हूँ।”
लड़की ने डाँटते हुए कहा।
“अरे भाई, मैं मिस डिक्रूज से मिलने आया हूँ।”
“मैं तुम्हें नहीं जानती, झूठा कहीं का। मैं मिस डिक्रूज हूँ।”
“देखिए तो यह खत!”
लड़की ने खत खोला और पढ़ा और एकदम उसने आवाज बदल दी।
“छिः बर्टी, तुम किसी दिन पागलखाने जाओगे। आपको डॉ. शुक्ला ने भेजा है। तुम तो मुझे बदनाम करा डालोगे!”
उसकी शक्ल और भी रोनी हो गयी , “मैं नहीं जानता था, मैं जानता नहीं था।” उसने और भी घबराकर कहा।
“माफ कीजिएगा!” लड़की ने बड़े मीठे स्वर में साफ हिन्दुस्तानी में कहा, “मेरे भाई का दिमाग ज़रा ठीक नहीं रहता, जब से इनकी पत्नी की मौत हो गयी।”
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