ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
|
7 पाठकों को प्रिय 305 पाठक हैं |
संवेदनशील प्रेमकथा।
और उसके बाद किसी ने अपने दोनों हाथों में जकड़ लिया और उसकी गरदन पर सवार हो गया। वह उछल पड़ा और अपने को छुड़ाने की कोशिश करने लगा। पहले तो वह कुछ समझ नहीं पाया। अजब रहस्यमय है यह बँगला। एक अव्यक्त भय और एक सिहरन में उसके हाथ-पाँव ढीले हो गये। लेकिन उसने हिम्मत करके अपना एक हाथ छुड़ा लिया और मुडक़र देखा तो एक बहुत कमजोर, बीमार-सा, पीली आँखों वाला गोरा उसे पकड़े हुए था। चन्दर के दूसरे हाथ को फिर पकडऩे की कोशिश करता हुआ वह हाँफता हुआ बोला (अँग्रेजी में), “रोज-रोज यहाँ से फूल गायब होते थे। मैं कहता था, कहता था, कौन ले जाता है। हो...हो...,” वह हाँफता जा रहा था, “आज मैंने पकड़ा तुम्हें। रोज चुपके से चले जाते थे...” वह चन्दर को कसकर पकड़े था लेकिन उस बीमार गोरे की साँस जैसे छूटी जा रही थी। चन्दर ने उसे झटका देकर धकेल दिया और डाँटकर बोला, “क्या मतलब है तुम्हारा! पागल है क्या! खबरदार जो हाथ बढ़ाया, अभी ढेर कर दूँगा तुझे! गोरा सुअर!” और उसने अपनी आस्तीनें चढ़ायीं।
वह धक्के से गिर गया था, धूल झाड़ते उठ बैठा और बड़ी ही रोनी आवाज में बोला, “कितना जुल्म है, कितना जुल्म है! मेरे फूल भी तुम चुरा ले गये और मुझे इतना हक भी नहीं कि तुम्हें धमकाऊँ! अब तुम मुझसे लड़ोगे! तुम जवान हो, मैं बूढ़ा हूँ। हाय रे मैं!” और सचमुच वह जैसे रोने लगा हो।
चन्दर ने उसका रोना देखा और उसका सारा गुस्सा हवा हो गया और हँसी रोककर बोला, “गलतफहमी है, जनाब! मैं बहुत दूर रहता हूँ। मैं चिठ्ठी लेकर मिस डिक्रूज से मिलने आया था।”
उसका रोना नहीं रुका, “तुम बहाना बनाते हो, बहाना बनाते हो और अगर मैं विश्वास नहीं करता तो तुम मारने की धमकी देते हो? अगर मैं कमजोर न होता...तो तुम्हें पीसकर खा जाता और तुम्हारी खोपड़ी कुचलकर फेंक देता जैसे तुमने मेरे फूल फेंके होंगे?”
“फिर तुमने गाली दी! मैं उठाकर तुम्हें अभी नाले में फेंक दूँगा!”
“अरे बाप रे! दौड़ो, दौड़ो, मुझे मार डाला... पॉपी... टॉमी... अरे दोनों कुत्ते मर गये...।” उसने डर के मारे चीखना शुरू किया।
“क्या है, बर्टी? क्यों चिल्ला रहे हो?” बाथरूम के अन्दर से किसी ने चिल्लाकर कहा।
“अरे मार डाला इसने...दौड़ो-दौड़ो!”
|